जीना है तो हंस के जियो – अब तो सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया

शुक्रवार को सप्रीम कोर्ट के पांच न्‍यायाधीशों की बेंच ने कुछ शर्तों के साथ इच्‍छा मृत्‍यु की इजाजत दे दी है ।  अदालत ने यह साफ-साफ कहा कि इस दौरान इच्छा मृत्यु मांगने वाले के सम्‍मान का ख्‍याल रखना भी बेहद जरूरी है । फैसले में यह भी साफ किया गया कि वसीयत न होने की स्थिति में बीमार व्यक्ति के परिजन हाईकोर्ट में इच्छा मृत्यु की मांग कर सकते हैं । कोर्ट ने कहा कि लाइलाज बीमारी से पीड़ित व्यक्ति ने अगर लिखित वसीयत में कहा है कि उसे उपकरणों के सहारे ज़िंदा नहीं रखा जाए, तो यह वैध होगा ।

जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि बीमार व्यक्ति यह तय कर सकता है कि लाइफ सपोर्ट कब बंद करना है । लाइफ सपोर्ट उसी स्थिति में बंद किया जा सकता है, जब मेडिकल बोर्ड यह घोषित कर दे कि व्यक्ति का इलाज नामुमकिन है ।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वसीयत का पालन कौन करेगा और इस प्रकार की इच्छा मृत्यु के लिए मेडिकल बोर्ड किस प्रकार हामी भरेगा, इस संबंध में वह पहले ही दिशा-निर्देश जारी कर चुका है ।

प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने पिछले साल 11 अक्टूबर को इस याचिका पर अपना फैसला सुरक्षित रखा था । सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने ये भी सवाल उठाया था कि जब सम्मान से जीने को अधिकार माना जाता है तो क्यों न सम्मान के साथ मरने को भी माना जाए ।

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