गंगा सफाई का जिम्मा मिलते ही एक्शन में आये नितिन गडकरी , गंगा नदी की सफाई का ब्लूप्रिंट तैयार 

गंगा सफाई के मोर्चे पर असफल रहने के कारण ही पीएम मोदी ने उमा भारती से यह मंत्रालय लेकर नितिन गडकरी को दिया हैं । गडकरी भी इस बात को बखूबी समझ रहे हैं कि बहुत उम्मीदों के साथ प्रधानमंत्री ने उन्हें यह जिम्मेदारी दी है ।
यही वजह हैं कि गडकरी पहले दिन से ही एक्शन में आ गए हैं। उन्होंने गंगा सफाई का बाकायदा ब्लूप्रिंट भी तैयार करवा लिया हैं।
 इस ब्लूप्रिंट के मुताबिक अगले तीन महीने में उन 10 शहरों में गंगा नदी की सफाई का काम शुरु हो जाएगा जहां गंगा नदी सबसे ज्यादा प्रदूषित है और जहां से सबसे ज्यादा  गंदगी गंगा नदीं में छोड़ी जाती है। इसमें फोकस सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने पर होगा।
-इन 10शहरों में -कोलकात्ता, वाराणसी, कानपुर, इलाहाबाद, पटना, हावड़ा, हरिद्वार और भागलपुर शामिल है। दरअसल , यही  10 शहर गंगा में 70 फीसदी प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है।
– सूत्रों के मुताबिक अगले 15 दिन में खुद नितिन गडकरी यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के साथ कानपुर में गंगा किनारे की गंदगी और गंगा में गिरने वाले नालों का ‘ऑन स्पॉट’ जायजा लेंगे। दरअसल , कानपुर में चमड़े की कई फैक्ट्रियां हैं जिनसे निकलने वाला केमिकल पानी गंगा नदीं में गिरता है। पर जिस अनुपात में कानपुर में गंगा नदी प्रदूषित होती है, उस अनुपात में गंदे पानी को साफ करने के लिए ट्रीटमेंट प्लांट नहीं है। इसके साथ ही शीशामऊ कानपुर का सबसे बड़ा नाला है जिससे रोज लाखों लीटर गंदा पानी गंगा नदी में गिरता है। कानपुर की पूरी गंदगी को यही नाला लाकर गंगा नदी में मिलाता है। लिहाजा इस नाले का मार्ग परिवर्तन ( divert) करने के लिेए काम तुरंत प्रभाव से शुरु करने का आदेश हो चुका है।
गौरतलब है कि मंत्रालय का प्रभार संभालते ही गडकरी ने पहली ही बैठक में नमामि गंगे परियोजना और प्रोजेक्ट्स की समीक्षा की थी। बैठक में गडकरी ने साफ कर दिया था कि केंद्र सरकार का काम सिर्फ पैसा देना नहीं है बल्कि जिम्मेदारी लेना भी है।
दरअसल केंद्र की सत्ता में आते ही मोदी सरकार ने वादा किया कि गंगा नदी को साफ करेगी और इसके लिए नमामि गंगे परियोजना की शुरुआत की गई। योजना के तीन साल पूरा होने के बाद भी गंगा की सूरत और पानी जब नहीं बदला तो पीएम मोदी ने उमा भारती को हटाकर मंत्रालय की कमान नितिन गडकरी को दी जो तय समय में काम पूरा करने के लिए जाने जाते हैं। लेकिन अब लोकसभा चुनाव में दो साल से कम वक्त बचा है, ऐसे में नितिन गडकरी के लिए भी यह राह आसान नहीं है।
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