ब्रूसेल्स
यूरोपियन यूनियन (EU) ने एंटी-ट्रस्ट फाइन के तौर पर गूगल पर रिकॉर्ड 2.4 बिलियन यूरो यानी 17 हजार करोड़ रुपए का जुर्माना लगाया है। माना जा रहा है कि इस फैसले से EU और डोनाल्ड ट्रम्प के बीच तकरार बढ़ सकती है। यूरोपियन कमीशन कॉम्पीटिशन के चीफ मारग्रेथे वेस्टेजर ने कहा, “अपनी शॉपिंग सर्विस को फायदा पहुंचाने के लिए सर्च इंजिन के तौर पर गूगल ने मार्केट में अपने वर्चस्व का गलत इस्तेमाल किया।”
वेस्टेजर ने कहा, “गूगल ने जो भी किया, वह ईयू एंटीट्रस्ट रूल्स के तहत गलत था। उसने दूसरी कंपनियों को मेरिट के आधार पर कम्पटीशन और इनोवेशन का मौका नहीं दिया। सबसे अहम ये है कि गूगल ने यूरोपियन कंज्यूमर्स को सर्विसेस चुनने और इनोवेशन का पूरा फायदा उठाने का मौका नहीं दिया।”
यूरोपियन कमीशन ने गूगल पर आरोप लगाया कि उसने अपनी ऑनलाइन गूगल शॉपिस सर्विस को सर्च रिजल्ट में बहुत ज्यादा प्राथमिकता दी है, ताकि दूसरी सर्विसेस जैसे ट्रिप एडवाइजर और एक्सपीडिया को नुकसान हो।
2010 में गूगल के खिलाफ किए गए 3 केस में से एक में ये फैसला सुनाया गया है। अमेरिका की स्टारबक्स, एप्पल, अमेजन और मैकडोनाल्ड जैसी कंपनियों के खिलाफ केस दर्ज किए गए थे।
यूरोपियन कमीशन ने कहा, “90 दिन के भीतर गूगल सर्च रिजल्ट में अपनी शॉपिंग सर्विस को प्रियॉरिटी देना बंद कर दे। अगर गूगल ऐसा नहीं करता है तो उस पर हर दिन के हिसाब से एल्फाबेट के टोटल बिजनेस का 5% एक्स्ट्रा फाइन देना होगा। मौजूदा फाइन में उस पर एल्फाबेट के टोटल बिजनेस का 3% फाइन लगाया गया है।”
हालांकि फैसले को गलत बताते हुए गूगल ने कहा, “हम आज दिए गए फैसले पर असहमति जताते हैं। हम अपील करने पर विचार कर हैं और इस फैसले का रिव्यू करेंगे। हमें उम्मीद है कि हम अपना स्टैंड साबित कर पाएंगे।”
गूगल ने कहा कि डाटा दिखाता है कि बार-बार सर्च करने की बजाय कंज्यूमर अपने प्रोडक्ट्स तक सीधे पहुंचाने वाले लिंक को पसंद करता है।
2013 में भी गूगल पर अमेरिका में जुर्माना लगाया गया था। उस वक्त भी सर्च में मैल्प्रैक्टिस (कदाचार) का आरोप लगा था। तब गूगल ने जुर्माना दिए बिना सर्च में कमियों को दूर कर लिया था।