नई दिल्ली में अंतर्राज्यीय परिषद् की स्थायी समिति की 11वीं बैठक सम्पन्न

केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं के क्रियान्वयन से राज्यों पर पड़ने वाले अतिरिक्त वित्तीय भार को वहन करे केन्द्र सरकार – श्री गुलाब चंद कटारिया

नई दिल्ली, 09 अप्रेल, 2017। केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं  को राज्यो में कार्यान्वित करने के वर्तमान शेयरिंग फामूर्ले से राज्यों पर पड़ने वाले अतिरिक्त वित्तीय भार को केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जाना चाहिए। राजस्थान के गृह मंत्राी श्री गुलाब चंद कटारिया ने रविवार को नई दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित अंतर्राज्यीय परिषद की स्थायी समिति की 11वीं बैठक के दौरान यह सुझाव दिया।
श्री कटारिया ने कहा कि पहले अधिकांश केन्द्र प्रवर्तित योजनाओं के लिए केन्द्र-राज्यों के बीच वित्तीय भागीदारी का पैटर्न 75: 25 का होता था परंतु अब 60: 40 कर देने से राज्यों को 25 प्रतिशत अंशदान की जगह 40 प्रतिशत वित्तीय अंशदान देना पड़ता है जिससे राज्यों पर लगातार वित्तीय भार बढ़ रहा है। उन्होनंे राजस्थान में प्रधानमंत्राी आवास योजना को इस आधार पर लागू करने से आ रही वित्तीय कठिनाईयों का जिक्र भी किया।
बैठक में केन्द्रीय गृहमंत्राी श्री राजनाथ सिंह एवं केन्द्रीय वित्त मंत्राी श्री अरूण जेटली के सहित परिषद की स्थायी समिति के सदस्य राज्यों के मुख्यमंत्रियों एवं मंत्रियों ने शिरकत की।
बैठक में श्री कटारिया ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा लगाए जाने वाले सैस एवं सरचार्ज में भी राज्यों को हिस्सा दिया जाना चाहिए जिससे कि राज्यों को वित्तीय दायित्वों को निभाने में आसानी हो सके। श्री कटारिया के आग्रह पर केन्द्रीय वित्त मंत्राी ने कहा कि जी.एस.टी. के आने से इस मुद्दे का हल निकल जाएगा तथा राज्यों को वित्तीय मुआवजे के रूप में भरपाई की जावेगी।
श्री कटारिया ने पूंछी आयोग की सिफारिशों पर अपना मत रखते हुए कहा कि आयोग के अनुसार शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय एवं  अभियांत्रिकी से जुड़ी सेवाओं को केन्द्रीय सेंवाओं  में शामिल करने का सुझाव आया है। उन्होंने कहा कि उक्त सभी राज्य विषय हैं तथा इनमें  अखिल भारतीय सेवाओं से कोई लाभ नही होगा अपितु भाषा क्षेत्राीय ज्ञान की अल्पता के कारण कठिनाईयां आएंगी। अतः शिक्षा, स्वास्थ्य, न्याय एवं अभियांत्रिकी से जुड़ी सेवाओं को राज्यों के दायरे में रखना चाहिए।
श्री कटारिया ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा समवर्ती सूची के किसी विषय पर कानून बनाने से पहले अंतर्राज्यीय काउंसिल के स्तर पर उस विषय पर चर्चा करवाया जाना चाहिए और संबंधित राज्य सरकारों से भी विचार विमर्श करना चाहिए। श्री कटारिया ने कहा कि पूंछी आयोग द्वारा विश्वविद्यालयों के कुलपति एवं अन्य कार्य हटाए जाने के संबंध में की गई सिफारिश युक्तिसंगत नही है अतः विश्वविद्यालयों के संबंध में राज्यपालों की वर्तमान भूमिका को बरकरार रखना उचित होगा।
श्री कटारिया ने केन्द्र सरकार से आग्रह करते हुए कहा कि न्यायालयों के कुछ विशेष निर्णयों से राज्य सरकार पर काफी अतिरिक्त वित्तीय भार अचानक आ जाता है इस संबंध में केन्द्र द्वारा राज्यों को वित्तीय सहयोग प्रदान करना चाहिए।  श्री कटारिया ने बैठक में प्रमुख खनिजों की रॉयल्टी दरों को प्रत्येक तीन वर्ष में रिवाईज करने, स्पैक्ट्रम की बिक्री से प्राप्त राशि का एक हिस्सा राज्यों को देने और वित्त आयोग की टर्मस ऑफ रेफरंेस निर्धारित करते समय राज्यों के मत को भी शामिल करने जैसे विषयों पर अपने सुझाव रखे।
बैठक में राजस्थान के प्रमुख शासन सचिव गृह श्री दीपक उप्रेती, निदेशक (बजट) श्री शरद मेहरा एवं विशेषाधिकारी श्री महेन्द्र पारख भी उपस्थित थे।
इसे भी पढ़ें :  छत्तीसगढ़ के अम्बिकापुर में शुरू होगा देश का पहला गार्बेज कैफे