पंजाब नैशनल बैंक का गौरवशाली इतिहास – गुलाम भारत का पहला स्वदेशी बैंक

पंजाब नैशनल बैंक आजकल भले ही घोटालों की वजह से चर्चा का विषय बना हो । सड़क से लेकर संसद तक इस बैंक के कामकाज को लेकर क्या-क्या नहीं कहा जा रहा है लेकिन यह भी एक हकीकत है कि इस बैंक का इतिहास काफी गौरवशाली रहा है । वास्तव में पंजाब नैशनल बैंक को देश का पहला स्वदेशी बैंक भी कहा जाता है । आइए हम आपको रुबरु करवाते है पंजाब नैशनल बैंक के उसी गौरवशाली इतिहास से….

पीएनबी की उत्पत्ति

पंजाब का अंग्रेजों के अधीन तेजी से विकास हुआ और वर्ष 1849 में इसे साम्राज्या में मिला लिए जाने के बाद इसके विकास में और तेजी आई। इसके परिणाम स्वरुप एक नया शिक्षित वर्ग उत्पन्न हुआ जिसमें गुलामी की जंजीरे तोड़कर स्वतंत्र होने की इच्छां थी ।

इस नवोदित वर्ग में यह इच्छा भी पनप रही थी कि भारतीय पूंजी और ऐसे प्रबन्धन से एक स्वदेशी बैंक की स्था्पना की जाए जो भारतीय समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करता हो । सर्वप्रथम यह‍ विचार आर्य समाज के राय मूल राज को आया और जैसा कि लाला लाजपतराय ने बताया था कि उनके मन में यह इच्छा बहुत समय से थी कि भारतीयों का अपना राष्ट्रीय बैंक होना चाहिए। वे महसूस कर रहे थे कि ‘’भारतीय पूंजी का इस्तेेमाल अंग्रेजी बैंकों और कंपनियों को चलाने में किया जा रहा था जिनसे होने वाला मुनाफा पूर्णत: अंग्रेजों को पहुंच रहा था और भारतीयों को अपनी पूंजी पर मिलने वाले थोड़े से ब्याज से ही संतुष्ट होना पड़ रहा था ।’’

लाला लाजपत राय का योगदान – गुलाम भारत का पहला स्वदेशी बैंक

राय मूल राज के कहने पर लाला लाजपतराय ने अपने कुछ चुनिंदा मित्रों को एक परिपत्र प्रेषित करके सही मायनों में स्वदेशी अभियान के पहले विशेष रचनात्म्क उपाय के रुप में एक भारतीय ज्वाहईंट स्टॉवक बैंक बनाए जाने का आग्रह किया। इंग्लैंड से लौटे लाला हरकृष्ण लाल को वाणिज्य और उद्योग की जानकारी थी जिसे वे मूर्त्त रुप देना चाहते थे।

इसे भी पढ़ें :  योगी के सीएम बनने पर क्यों नाराज हुआ NYT? भारत ने किया पलटवार

इस बैंक का जन्म 19 मई, 1894 को हुआ। बैंक के संस्थापक बोर्ड की स्थापना में भारत के अलग-अलग हिस्सों से विभिन्न धर्मों और पृष्ठभूमि के व्यक्तियों को शामिल किया गया जिनका एकमात्र उद्देश्य ऐसे बैंक की स्थापना करना था जो राष्ट्र के आर्थिक हितों को और आगे बढ़ाने वाला हो।

यह बैंक कारोबार हेतु 12 अप्रैल, 1895 को खुल गया।

इसके पहले निदेशक-मंडल में 7 निदेशक दयाल सिंह कालेज और ट्रिब्यून के संस्थापक सरदार दयाल सिंह मजीठिया, डीएवी कालेज के संस्थापकों में शामिल और उसकी प्रबन्ध-समिति के अध्यक्ष लाला लालचंद, विख्यात बगांली वकील काली प्रसोनो रॉय जो वर्ष 1900 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के लाहौर सत्र में उसकी स्वागत समिति के अध्यक्ष भी रहे थे, लाला हरकृष्ण लाल जो पंजाब के पहले उद्योगपति के तौर पर प्रसिद्ध हुए, ईसी जेस्सा,वाला, सुप्रसिद्ध पारसी व्यापारी और जमशेदजी एंड कं. लाहौर के साझीदार, लाला प्रभु दयाल, मुलतान के जाने-माने रईस, व्यापारी और परोपकारी, बक्ष्शी जयशी राम, लाहौर के प्रसिद्ध दीवानी वकील और लाला ढोलन दास, अमृतसर के सुप्रसिद्ध बैंकर, व्यापारी और रईस थे। अंतराष्ट्रीय और सार्वभौमिक भावना से ओतप्रोत होकर एक बंगाली, एक पारसी, एक सिख और कुछ हिन्दुओं ने इस बैंक को स्थापित किया जो कारोबार हेतु जन-साधारण के लिए 12 अप्रैल, 1985 को खुला। इसके लिए उनमें एक मिशनरी वाला उत्साह था। सरदार दयाल सिंह मजीठिया इसके प्रथम अध्यक्ष बने जबकि लाला हरकृष्ण लाल बोर्ड के पहले सचिव और बुलाकी राम शास्त्री , लाहौर के बेरिस्टरर इसके प्रबन्धक नियुक्त किए गए।

मात्र 7 माह के परिचालन के बाद ही 4 फीसदी के हिसाब से पहले लाभांश की घोषणा की गई। अनारकली, लाहौर के आर्य समाज मंदिर के सामने स्थित इस बैंक में सर्वप्रथम लाला लाजपतराय ने खाता खोला। उनके छोटे भाई ने बैंक में प्रबन्धक के रुप में कार्यग्रहण किया। बैंक की प्राधिकृत कुल पूंजी 2 लाख रुपए और कार्यशील पूंजी 20000 रुपए थी। इसके कुल कर्मचारी संख्याृ 9 और कुल मासिक वेतन 320 रुपए था।

इसे भी पढ़ें :  बाबा रामदेव की कंपनी पतंजलि ने लॉन्‍च किया 4 रुपये लीटर सस्‍ता टोंड दूध

लाहौर से हुई शुरुआत – 1929 में आई भयानक मंदी में भी बचा रहा बैंक

लाहौर से बाहर इसकी पहली शाखा वर्ष 1900 में रावलपिंडी में खोली गई। अपनी स्था्पना के पहले दशक में बैंक ने मंद गति से लेकिन निरन्तर प्रगति की। कुछ समय बाद लाला लाजपतराय निदेशक मंडल में शामिल हो गए। लाला हरकृष्ण लाल द्वारा स्थापित पीपल्स बैंक ऑफ इंडिया के फेल हो जाने से वर्ष 1913 में भारतीय बैंकिंग उद्योग में भारी संकट उत्पन्न हो गया। इस अवधि के दौरान 78 बैंक फेल हो गए। पंजाब नैशनल बैंक डटा रहा। पंजाब के तत्कालीन वित्तीय आयुक्त जे.एच.मेनार्ड ने कहा—‘’आपका बैंक अस्तित्व में रहा—नि:संदेह अच्छे प्रबन्धन की वजह से’’। ये शब्द बैंक प्रबन्धन में जनता के विश्वास को पर्याप्ता व्यक्त करते हैं ।

संसार भर में वर्ष 1926 से 36 तक की अवधि बैंकिंग उद्योग के लिए उठा-पटक की और नुकसान देय रही। वर्ष 1929 में वाल स्ट्रीट में आई भारी गिरावट से दुनिया जबरदस्त आर्थिक संकट में आ गई।

इसी अवधि के दौरान जलियावाला बाग समिति द्वारा बैंक में खाता खोला गया जिसका परिचालन आने वाले दशक में महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरु ने किया। वर्ष 1941 से 1946 तक की पांच वर्ष की अवधि के दौरान अत्यधिक विकास हुआ। आरंभ में मात्र 71 शाखाएं ही थीं जो बढ़कर 278 हो गई । जमाराशियां 10 करोड़ रु. से बढ़कर 62 करोड़ रु. हो गई।

1947 में मुख्य कार्यालय लाहौर से दिल्ली किया गया शिफ्ट- जीता लोगों का भरोसा

31 मार्च 1947 को बैंक के पदाधिकारियों ने बैंक के पंजीकृत कार्यालय को लाहौर से दिल्ली स्था़नान्तरित करने का निर्णय किया और इसके लिए उन्होंने लाहौर उच्‍च न्यायालय से 20 जून, 1947 को अनुमति ले ली।

इसके बाद पीएनबी सिविल लाइंस, दिल्ली स्थित श्रीनिवास आहाते में अवस्थित हुआ। बैंक के कई कर्मचारी अपनी ड्यूटी करते हुए उस समय हुए व्यापक दंगों के शिकार हो गए। स्थिति और भी नाजुक हो गई और बैंक को विवश होकर पश्चिमी पाकिस्तान स्थित अपने 92 कार्यालय यानी कुल कार्यालयों के 33 प्रतिशत कार्यालय जिनमें कुल जमाराशियों का 40 फीसदी मौजूद था बंद करने पड़ गए। बहरहाल, बैंक ने अपनी कुछेक केयरटेकर शाखाओं को कायम रखा।

इसे भी पढ़ें :  नगालैंड, मेघालय और त्रिपुरा की जीत से उत्साहित अमित शाह - अब उड़ीसा, बंगाल, केरल की बारी

इसके बाद बैंक ने विस्थापित खाताधारकों को पुनर्वासित करने का कार्य आरंभ किया। पाकिस्तान से आए विस्थापितों को उनके द्वारा जो भी सबूत दिया गया उसके आधार पर उनकी जमाराशि का भुगतान कर दिया गया। इससे उनका बैंक के प्रति विश्वाास और भी पुख्ता हो गया और पीएनबी भरोसे का प्रतीक और विश्वसनीय बैंक बन गया। फालतु स्टाफ एक बड़ी समस्या बन गया जिससे तीव्र विस्ता‍र प्राथमिकता हो गई। इस नीति का बहुत फायदा हुआ और इससे व्यापक विकास के युग का शुभारंभ हुआ।

वर्ष 1951 में बैंक ने भारत बैँक लि. की आस्तियों और देयताओं का अधिग्रहण किया और यह निजी क्षेत्र का दूसरा सबसे बड़ा बैंक बन गया। वर्ष 1962 में इसने इंडो-कमर्शियल बैंक का बैंक में समामेलन किया। जमाराशियां 1949 में घटकर 43 करोड़ रुपए रह गई थी जो जुलाई, 1969 तक बढ़कर 355 करोड़ रु. तक पहुंच गई। बैंक के कार्यालयों की संख्या बढ़कर 569 हो गई और अग्रिम जोकि 1949 में 19 करोड़ रुपए थे इसके राष्ट्रीयकरण के समय यानि जुलाई, 1969 तक बढ़कर 243 करोड़ रुपए हो गए थे।

वर्ष 1895 में अपनी स्था्पना के समय से ही पीएनबी ‘’लोगों का बैंक’’ रहा है और सम्पूर्ण देश में लाखों लोगों की सेवा में जुटा है। इसे बैंक के अन्य ग्राहकों के साथ- साथ जवाहर लाल नेहरु, गोबिंद वल्लभपंत, लाल बहादुर शास्त्री, रफी अहमद किदवई, इंदिरा गांधी आदि जैसे राष्ट्रीय नेताओं की भी सेवा करने का सुअवसर प्राप्त हुआ है।