लगता है बिहार के इतिहास में नीतीश की वर्तमान सरकार एक नया ही इतिहास बनाने की ओर अग्रसर है । 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद बुरी तरह हारे नीतीश ने पहले लालू यादव के सहयोग से मांझी को मुख्यमंत्री बनाया फिर खुद बने । विधानसभा का चुनाव लालू यादव की पार्टी के साथ मिलकर लड़े , जीते और फिर से मुख्यमंत्री बने ।
बिहार विधानसभा का चुनाव लालू यादव और कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ने वाले नीतीश चुनाव जीतकर फिर से मुख्यमंत्री बने और इस बार उन्होने उप मुख्यमंत्री की कुर्सी लालू यादव के छोटे बेटे को सौंपी । लेकिन कुछ ही महीनों बाद सुशासन बाबू के नाम से मशहुर नीतीश को लालू का भ्रष्टाचार सताने लगा और मोदी का विकास याद आने लगा तो क्या नीतीश कुमार ने फिर से पलटी मारी और जब तक किसी को कुछ समझ आता तब तक उन्हे जेडी-यू के साथ-साथ बीजेपी के विधायकों ने भी अपना नेता चुन लिया । इस्तीफा देने के कुछ ही घंटों के बाद नीतीश फिर से मुख्यमंत्री बने और इस बार उन्होने उपमुख्यमंत्री का ताज पहनाया अपने पुरानी सहयोगी सुशील मोदी को ।
ऐसे समय में जब बिहार के कई जिले दंगो और सांप्रदायिक तनाव की आग में झुलस रहे हो । नीतीश अपने सहयोगी बीजेपी से कुछ ज्यादा ही उम्मीदें पाल बैठे है । नीतीश चाहते है कि बीजेपी अपने बयानबहादुर नेताओं पर अंकुश लगाए , उन्हे चूप रहने को कहे। नीतीश यह भी चाहते है कि बिहार बीजेपी के नेताओं के साथ-साथ केन्द्र के भी बड़े नेता शांति की अपील कर अपने स्थानीय कार्यकर्ताओं को कड़ा संदेश दे। लेकिन भला बीजेपी ऐसा क्यों करेगी ऐसा करने और कहने का सीधा मतलब होगा कि बीजेपी इन सबमें अपनी भागीदारी मान नही है । बीजेपी इतनी बड़ी गलती क्यों करना चाहेगी । परेशान होकर नीतीश ने अपने पुराने सहयोगी वर्तमान उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील मोदी से मदद मांगी । मोदी ने भूपेन्द्र यादव और बिहार बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष की मौजूदगी में बिहार बीजेपी कोर कमेटी की बैठक में हिन्दुत्व के मुद्दें पर नरम रूख अपनाने को कहा लेकिन बैठक में मौजूद नेताओं ने सुशील मोदी की सलाह को सिरे से खारिज कर दिया ।
यह बात सही है कि नीतीश कुमार अपनी छवि को लेकर इतने चिंतित रहते हैं कि वो कभी भी किसी को छोड़कर किसी का भी दामन थाम सकतें है और एक बार फिर से बिहार में यही हालात बनते जा रहे है ।
धर्मनिरपेक्षता के नाम पर बीजेपी को छोड़ा लालू यादव का दामन थामा । भ्रष्टाचार और विकास के नाम पर लालू को छोडकर फिर से बीजेपी का दामन थामा और अब दंगों का ठीकरा बीजेपी के माथे फोड़ने की रणनीति के तहत नीतीश एक बार फिर से बीजेपी का साथ छोड़ दे तो किसी को हैरत नहीं होनी चाहिए क्योंकि सवाल छवि से ज्यादा कुर्सी का है वोट बैंक का है लेकिन लालू यादव एम्स में भर्ती है और बताया जा रहा है कि इस बार लालू यादव के बेटे नीतीश की कुर्सी बचाने की बहुत बड़ी कीमत वसूल सकते हैं ।