रघुवर दास को झटका – गवर्नर ने बिना साइन किए लौटाया बिल

रांची

बीजेपी सांसद और पूर्व केन्द्रीय मंत्री करिया मुंडा ने अपनी ही राज्य सरकार के बिल में सशोधन का विरोध करते हुए इसे आदिवासियों के खिलाफ बताया हैं।

नेता विपक्ष हेमंत सोरेन ने भी इस संशोधन को कठोर बताया है। उन्होंने कहा यदि बीजेपी सरकार अपनी आदिवासी-विरोधी मानसिकता के साथ आगे बढ़ती है, तो हम अपने आंदोलन को तेज करेंगे। जेवीएम प्रमुख बाबूलाल मरांडी ने कहा कि सरकार को कॉरर्पोरेट के फायदे के बजाय जनता के फायदे के लिए काम करना चाहिए। पिछले सात महीनों से दास सरकार कह रही है कि बिल आदिवासी गढ़ में विकास के पहियों को गति देगा। सरकार ने एसपीटी अधिनियम की धारा 13 और सीएनटी अधिनियम की धारा 21 के तहत विधेयक में संशोधक का प्रस्ताव रखा था।

धारा 21 में जमीन की प्रकृति बदल कर इसका गैर कृषि कार्य में उपयोग का प्रावधान प्रस्तावित था, लेकिन जमीन का मालिकाना हक आदिवासी के पास ही रहेगा। इस संशोधन के तहत प्रावधान था कि जमीन को जिस उद्देश्य से लिया गया है अगर पांच साल तक उसका उपयोग उसी काम में नहीं किया गया तो जमीन अपने आप जमीन के मालिक के पास चली जाएगी। विपक्ष ने जनजातियों और मूल बसने वालों की कीमत पर उद्योगपतियों को खुश करने के लिए विधेयकों को सत्ताधारी शासन का एक हिस्सा बताया है। विपक्ष का कहना है कि एक बार जमीन अगर कॉर्पोरेट के इस्तेमाल के लिए चली गई तो उसे वापस लेना आसान नहीं होगा।

राज्य सरकार को झटका देते हुए प्रदेश की राज्यपाल ने भी इस बिल को हस्ताक्षर किये बिना ही लौटा कर सररार से स्पष्टीकरण मांग लिया है ।

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