नए राष्ट्रपति के चुनाव के लिए सोमवार को वोटिंग जारी है । 4851 सांसद-विधायक इसके लिए वोटिंग करेंगे। एनडीए उम्मीदवार रामनाथ कोविंद और यूपीए की मीरा कुमार के बीच मुकाबला है। 20 तारीख को वोटों की गिनती होगी, उसी दिन नतीजे भी आ जाएंगे। हालांकि, मौजूदा हालात में कोविंद का राष्ट्रपति चुना जाना करीब तय माना जा रहा है। हांलाकि दोनों में से कोई भी चुना जाए, देश को के आर नारायणन के बाद दूसरा दलित राष्ट्रपति मिलना तय है।
राष्ट्रपति चुनाव से जुड़ा हर तथ्य –
कौन चुनता है राष्ट्रपति ?
लोकसभा सांसद – कुल 543 , सभी वोट दे सकेंगे ।
राज्यसभा सांसद – कुल 233 , 231 वोट दे सकेंगे।
31 विधानसभा के विधायक – कुल 4120, वोट दे सकेंगे 4077
कैसे निकालते है वोट की कीमत
इस चुनाव में डाले जाने वाले वोट की वैल्यू तय होती है। इसमें राज्य की आबादी का अहम रोल होता है। विधायकों और सांसदों की वोट वैल्यू निकालने के लिए दो अलग-अलग फॉर्मूले का इस्तेमाल किए जाते हैं।
विधायक– इनके वोट की वैल्यू तय करने के लिए कुल विधायकों की संख्या में 1000 का मल्टीप्लाई किया जाता है। फिर इससे राज्य की 1971 में रही कुल आबादी को डिवाइड कर दिया जाता है। देशभर के विधायकों के वोटों की टोटल वैल्यू 5,43,218 है। विधायकों की संख्या बीच में कम होने पर किसी राज्य में एक विधायक की वोट वैल्यू नहीं बदलती। जैसे- मध्य प्रदेश की 1971 में कुल आबादी 30,017,180 थी। इसलिए मध्य प्रदेश में एक विधायक की वोट वैल्यू 30,017,180/230X1000 = 30,017,180/2310000 = 131 है।
सांसद– इनके वोट की वैल्यू निकालने के लिए सभी विधायकों की वोट वैल्यू को सांसदों की संख्या से डिवाइड कर देते हैं। यानी विधायकों की टोटल वैल्यू 5,43,218 को 776 से डिवाइड करेंगे। इससे एक सांसद की वोट वैल्यू 708 निकलेगी। सांसदों की संख्या बीच में कम होने पर यह वोट वैल्यू नहीं बदलती।
विधायकों-सांसदों के वोट की वर्तमान कीमत-
लोकसभा: 543 सांसद वोट देने के लिए एलिजिबल हैं। हर सांसद की वोट वैल्यू 708 है। इसलिए सभी सांसदों की कुल वोट वैल्यू 543×708= 3,84,444 होगी।
राज्यसभा: 233 सांसद, लेकिन 2 वोट नहीं दे पाएंगे। इसलिए 231 सांसद वोट देने के लिए एलिजिबल हैं। यहां भी हर सांसद की वोट वैल्यू 708 है। इसलिए सभी सांसदों की कुल वोट वैल्यू 231×708= 1,63,548 होगी।
देशभर की 31 विधानसभा के 4120 विधायक हैं, लेकिन इनमें से कुछ राज्यों में विधायकों को अयोग्य किए जाने के बाद 4076 विधायक वोट देने के लिए एलिजिबल हैं। हर राज्य में इनकी वोट वैल्यू अलग-अलग है। सभी विधायकों की कुल वोट वैल्यू 5,43,218 है। (मध्य प्रदेश से नरोत्तम और चित्रकूट विधायक प्रेम सिंह का वोट हटाकर)
आपको बता दें कि 12 नॉमिनेटेड राज्यसभा मेंबर्स और लोकसभा में दो एंग्लो-इंडियन कम्युनिटी के नॉमिनेटेड मेंबर्स भी वोट नहीं डाल सकेंगे।
1971 की जनसंख्या के आधार पर होते है राष्ट्रपति चुनाव –
1971 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि उस वक्त देश की कुल आबादी 54.81 करोड़ थी । वहीं 2011 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि देश की आबादी बढ़कर 121.01 करोड़ हो गई है । 2017 में अभी अनुमान है कि देश की आबादी 128 करोड़ से अधिक है । इसका मतलब यह हुआ कि बीते 46 साल में देश की आबादी तकरीबन ढाई गुना हो गई । इसके बावजूद राष्ट्रपति चुनाव में वोट देने वाले जनप्रतिनिधियों के मतों का निर्धारण 1971 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर ही किया जा रहा है । यानी कुछ ही दिनों बाद होने वाला राष्ट्रपति चुनाव भी 46 साल पुरानी जनगणना के आंकड़ों को आधार बनाकर ही होने वाला है।
अगर आधार वर्ष को 1971 के बजाए 2011 कर दिया जाए तो 40 सालों में बढ़ी आबादी को देखते हुए कई राज्यों के विधायकों के मतों की संख्या काफी बढ़ जाएगी और कुल मतों में उनकी हिस्सेदारी में भी बढ़ोतरी हो जाएगी । 1971 की आबादी के आधार पर राष्ट्रपति चुनाव करवाए जाने से इस चुनाव में उन राज्यों को वाजिब प्रतिनिधित्व नहीं मिल पाता है जिनकी आबादी इस दौरान दूसरे राज्यों की तुलना में तेजी से बढ़ी है ।
दरअसल, संविधान में राष्ट्रपति चुनाव के लिए जनप्रतिनिधियों के मतों के निर्धारण को लेकर यह साफ था कि यह काम सबसे नई जनगणना के आंकड़ों के आधार पर होगा । इसलिए 1952 का राष्ट्रपति चुनाव 1951 की जनगणना के आधार पर हुआ । जबकि 1961 की जनगणना के आंकड़े समय पर नहीं उपलब्ध नहीं होने की वजह से 1962 में राष्ट्रपति का चुनाव भी 1951 की जनगणना के आधार पर ही हुआ । इसके बाद 70 के दशक में हुए राष्ट्रपति चुनावों का आधार 1971 की जनगणना बनी ।
1971 की जनगणना को आधार बनाकर ही लोकसभा और विधानसभा के निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन हुआ । 2004 तक के आम चुनाव उसी परिसीमन के आधार पर हुए और इस बीच हुए विधानसभा चुनावों का आधार भी 1971 की आबादी के आधार पर हुआ परिसीमन ही रहा । इस दौरान हुए सभी राष्ट्रपति चुनाव 1971 की जनगणना के आधार पर ही होते रहे । जबकि संविधान में यह प्रावधान था कि सबसे नई जनगणना को आधार बनाया जाएगा , लेकिन परिसीमन का आधार पुराना होने की वजह से राष्ट्रपति चुनाव भी पुराने आधार पर ही होता रहा । जब इस गड़बड़ी की ओर कुछ लोगों ने 2001 में सरकार का ध्यान खींचना कराना चाहा तो उस वक्त केंद्र की सत्ता पर काबिज अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार ने संविधान संशोधन करके यह तय कर दिया कि 2026 तक होने वाले सभी राष्ट्रपति चुनाव 1971 की जनगणना के आधार पर ही होंगे । जबकि उस वक्त यह मांग की जा रही थी कि बढ़ती आबादी को देखते हुए राष्ट्रपति चुनाव का आधार भी नई जनगणना के आंकड़ों को बनाया जाए।
दरअसल , नया आधार वर्ष लेते ही राष्ट्रपति चुनाव में तमिलनाडु और केरल जैसे दक्षिण भारतीय राज्यों के मतों की हिस्सेदारी घट जाएगी और उत्तर भारत के कुछ राज्यों के मतों की हिस्सेदारी बढ़ जाएगी । 1971 की आबादी के हिसाब से राष्ट्रपति चुनाव में पड़ने वाले कुल मतों में राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार की हिस्सेदारी क्रमशः 4.69 फीसदी, 15.25 फीसदी और 7.65 फीसदी है । जबकि अगर 2001 की जनगणना को आधार बनाया जाए तो इन तीनों राज्यों की कुल मतों की संख्या में हिस्सेदारी बढ़कर क्रमशः 5.5 फीसदी, 16.19 फीसदी और 8.08 फीसदी हो जाएगी । नया आधार वर्ष तय होने के बाद घाटे में रहने वाले प्रमुख राज्य होंगे तमिलनाडु और केरल । 1971 की जनगणना के हिसाब से इन राज्यों की हिस्सेदारी क्रमशः 7.49 फीसदी और 3.87 फीसदी थी , जो 2001 की जनगणना के आधार पर घटकर क्रमशः 6.04 फीसदी और 3.09 फीसदी रह जाएगी।