सती सावित्री , क्या आप वाकई जानते हैं कि सती सावित्री कौन थी ? जब हम सावित्री को सती सावित्री कहते हैं, तो कैसा महसूस होता है?आपके दिमाग में सती सावित्री को लेकर कैसी छवि उभरती है ? यही न कि हम एक सीधी-सादी, अपनी किसी भी पहचान से अलग, ससुराल से बंधी, गूंगी-बहरी किस्म की औरत पर बात कर रहे हैं। एक ऐसी औरत के बारे में बात कर रहें हैं जो गाय-भैंस की तरह खूटे से बंधी रहती है। लेकिन क्या वाकई यह सच है ? क्या सती सावित्री बिल्कुल ऐसी ही थी , जैसा हम सोचते हैं या कि जैसा हमें बताया गया है।
आइए आपको अब सच बताते हैं । सच्चाई ये है कि जिस तरह की बेचारी वाली इमेज को हमने सती सावित्री से जोड़ दिया है वो बिल्कुल पूरी तरह से सरासर गलत है , मिथ्या है। हकीकत में इस तरह की सती टाइप इमेज से बिल्कुल अलग है सावित्री। सावित्री को किसी ने हांका नहीं , कोई हांक भी नहीं पाया। उसने अपनी पसंद से शादी की है और जिससे शादी की , उसके साथ खड़ी रही , अच्छे-बुरे हर दौर में उसका साथ दिया । जरा इस कथा को ठीक से पढ़िए और फिर समझने की कोशिश कीजिए की झूठ किस तरह से हमें अज्ञानी बना रहा है । किस तरह से हम अपने ही धर्म , अपनी ही मान्यताओं , अपने धर्म से जुड़ी एक बहादुर स्त्री का मजाक उड़ाते रहे हैं , बनाते रहे हैं। बड़मावस यानी सावित्री का दिन । एक खास अमावस्या जिस दिन वट सावित्री व्रत होता है। इस दिन सावित्री को जानना और समझना और भी जरूरी हो जाता है क्योंकि सावित्री को कोसना आसान है, सावित्री को जीना बहुत मुश्किल है।
सावित्री की पूरी कहानी
एक राजा की बेटी थी सावित्री। वह खुद अपने वर की तलाश में निकली थी। कई राजदरबारों में वह गई, लेकिन उसे कोई पसंद नहीं आया। आखिरकार एक तपोवन में उसकी तलाश पूरी हुई। वहां एक बूढ़ा अंधा राजा अपनी रानी औरे बेटे के साथ वनवास भोग रहा था। उसी बेटे सत्यवान को वह पसंद करती है। पिता उसे किसी राजकुमार को चुनने को समझाते हैं। लेकिन वह नहीं मानती। नारद तक उसे आकर समझाते हैं , बताते हैं कि जिसे वह चुन रही है उसकी आयु तो महज एक साल ही बची है । लेकिन सत्यवान को पसंद कर चुकी सावित्री अपने फैसले से टस से मस नहीं होती। वह सत्यवान से ही शादी करती है और बाद की कहानी तो हम सबको पता है कि कैसे वो अपने पति की जिंदगी के लिए यमराज तक से लड़ जाती है ।
सोचिए कितने गजब की प्रेम गाथा है यह । इसमें सावित्री न केवल अपनी पसंद का वर चुनती है, बल्कि तमाम विरोधों के बावजूद उस पर अड़ती है। कहने को तो आज अपना समाज काफी आगे निकल चुका है। सचमुच महिलाओं को बहुत अधिकार भी मिल गए हैं। लेकिन उसके बावजूद सावित्री होना आसान नहीं है। कितनी लड़कियां अपनी पसंद के उस लड़के से शादी करना चाहेंगी, जिसकी उम्र का महज एक साल बचा हो ? जिसका सब कुछ छिन गया हो। जो गर्दिश में दिन बिता रहा हो। सोचने की बात यह है कि उन्हें हम सती सावित्री कहते हैं। लेकिन उन्होंने सत्यवान के साथ सती होना तय नहीं किया था। वह सत्यवान को वापस लाना चाहती थी। कौन नहीं चाहता कि उसका जीवन साथी वापस आ जाए? ताकि एक लंबी खूबसूरत जिंदगी बिताई जा सके। यह अलग बात है कि उस पर किसी का वश नहीं चलता। इतनी सदियों में सावित्री की छवि को हमने कहां से कहां पहुंचा दिया है? खुद सावित्री भी आ जाएं, तो उसे पहचान न पाएं। वक्त आ गया है कि हमें सावित्री को गंभीरता और गहराई से समझने की जरूरत है। उम्मीद है कि अब सती सावित्री शब्द को आप लोग मजाक या दया का पात्र तो कतई नहीं बनाएंगे।