महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार – पूरा कर पाएगी कार्यकाल ?

विचारधारा के आधार पर शिवसेना 1989 के बाद से ही आक्रामक हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार करती रही है । इसलिए बार-बार यह सवाल उठ रहा है कि फिलहाल बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए शिवसेना को समर्थन देने वाली कांग्रेस और एनसीपी कब तक इस सरकार को झेल पाएगी ? सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि फिलहाल सिर्फ पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी को सबक सिखाने के लिए कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली शिवसेना आखिर कब तक दिल्ली दरबार के दबाव को झेल पाएगी ? इस बात में कोई दो-राय नहीं है कि मोदी-शाह की जोड़ी के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद से ही देश का राजनीतिक माहौल पूरी तरह से बदल गया है। हिंदुत्व विचारधारा के समर्थक आक्रामक हो गए हैं और अब हर राजनीतिक दल को बीजेपी के पिच पर ही आकर खेलना पड़ रहा है। अब इसी समस्या का सामना आने वाले दिनों में लगातार , बार-बार शिवसेना को भी करना पड़ेगा।

By संतोष पाठक , वरिष्ठ पत्रकार

महाराष्ट्र का महानाटक फिलहाल तो थम गया है लेकिन उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री का पद संभालने के साथ ही एक सवाल लगातार पूछा जा रहा है कि क्या महाराष्ट्र की ठाकरे सरकार अपना कार्यकाल पूरा पाएगी ? कांग्रेस और एनसीपी के समर्थन से उद्धव ठाकरे कितने दिनों तक मुख्यमंत्री रह पाएंगे ? बीजेपी की भाषा में कहे तो तीन पहियों की ये सरकार कितने दिन तक महाराष्ट्र में शासन कर पाएगी? शरद पवार की पार्टी एनसीपी और इससे भी ज्यादा पवार परिवार की लड़ाई कब तक इस सरकार को चलने देगी ? कांग्रेस कब तक इस गठबंधन सरकार का बोझ ढोती रहेगी ? बीजेपी कब तक शांति से इस सरकार को चलने देगी ?

मिलते नहीं विचार तो कब तक रहेंगे साथ ?

आखिर यह सवाल बार-बार क्यों पूछा जा रहा है ? क्या यह सवाल सिर्फ सरकार विरोधी बीजेपी ही उठा रही है ? जवाब है नहीं , सरकार के विरोधी ही नहीं बल्कि कट्टर समर्थक यहां तक कि सरकार बनाने और चलाने वाले व्यक्तियों के मन में भी यह सवाल बार-बार उठ रहा है कि कब तक ? राजनीतिक विवशताओं की वजह से भले ही वो इसे सार्वजनिक रुप से स्वीकार न करे लेकिन मन में दुविधा तो बनी ही हुई है ।

यह सवाल बार-बार इसलिए उठ रहा है क्योंकि गठबंधन में शामिल दलों की विचारधाराएं बिल्कुल अलग है । इनके समर्थकों , नीतियों और मतदाताओं के एजेडें में भी जमीन-आसमान का फर्क है। शरद पवार ने 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दें को उठाकर कांग्रेस से अलग होकर ही एनसीपी का गठन किया था लेकिन यह मुद्दा पार्टी गठन के कुछ समय बाद ही पवार के लिए महत्वहीन हो गया । वास्तव में इन दोनों ही दलों में विचारधारा के आधार पर कोई मतभेद नहीं है। एनसीपी महाराष्ट्र में 15 साल तक कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार चला चुकी है। शरद पवार स्वयं केन्द्र में मनमोहन सरकार में 10 वर्षों तक मंत्री रह चुके हैं । इसलिए कांग्रेस और एनसीपी के बीच मतभेद सिर्फ मंत्रालय और सरकार के फैसलों को लेकर उभर सकते हैं लेकिन विचारधारा के स्तर पर नहीं। हालांकि शिवसेना के साथ ऐसा नहीं है ।

उद्धव ठाकरे के सिर पर सज गया कांटों भरा ताज  

मुख्यमंत्री बनने के बाद पहले प्रेस कांफ्रेंस में जिस तरह से उद्धव ठाकरे शिवसेना के सेक्युलर बन जाने के सवाल पर गुस्साते नजर आए , उससे यह बात तो साबित हो ही गई कि उनके सिर पर कांटों भरा ताज सज गया गया है। दरअसल , विचारधारा के आधार पर शिवसेना 1989 के बाद से ही आक्रामक हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार करती रही है । इसलिए बार-बार यह सवाल उठ रहा है कि फिलहाल बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए शिवसेना को समर्थन देने वाली कांग्रेस और एनसीपी कब तक इस सरकार को झेल पाएगी ? सवाल यह भी खड़ा हो रहा है कि फिलहाल सिर्फ पीएम मोदी और अमित शाह की जोड़ी को सबक सिखाने के लिए कांग्रेस और एनसीपी के साथ मिलकर सरकार बनाने वाली शिवसेना आखिर कब तक दिल्ली दरबार के दबाव को झेल पाएगी ?

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इस बात में कोई दो-राय नहीं है कि मोदी-शाह की जोड़ी के राष्ट्रीय राजनीति में आने के बाद से ही देश का राजनीतिक माहौल पूरी तरह से बदल गया है। हिंदुत्व विचारधारा के समर्थक आक्रामक हो गए हैं और अब हर राजनीतिक दल को बीजेपी के पिच पर ही आकर खेलना पड़ रहा है। अब इसी समस्या का सामना आने वाले दिनों में लगातार , बार-बार शिवसेना को भी करना पड़ेगा। देश में बन चुके वर्तमान राजनीतिक और सामाजिक माहौल में शिवसेना को बार-बार यह तय करना पड़ेगा कि वीर सावरकर को भारत रत्न देने पर उसका क्या रवैया है ? एनआरसी और नागरिकता कानून पर उसका क्या रूख है ? हिंदुत्व से जुड़े मुद्दों पर उसकी क्या राय है ? जनसंख्या नियंत्रण कानून पर शिवसेना का क्या पक्ष है ? बांग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को देश से बाहर निकालने पर अब ठाकरे क्या कहेंगे ? कांग्रेस हो या एनसीपी इन तमाम मुद्दों पर ये दोनों ही दल शिवसेना की लगातार परीक्षा लेते रहेंगे और हर बार शिवसेना को अपने आपको सेक्युलर साबित करना पड़ेगा। इन तमाम मुद्दों पर शिवसेना के साथ-साथ कांग्रेस और एनसीपी को को भी अपनी-अपनी भूमिका तय करनी होगी जो इस सरकार की अस्थिरता का कारण बन सकता है।

बीजेपी को बाहर रखने के लिए तीनों ने बनाई है सरकार

शिवसेना-एनसीपी-कांग्रेस , ये तीनों ही पार्टियां दावा कर रही हैं कि वो महाराष्ट्र के हित में एक साथ आए हैं, लोकतंत्र को बचाने के लिए और सबसे महत्वपूर्ण राज्य के किसानों के भले के लिए एक साथ आए हैं। लेकिन यह बात तो बिल्कुल शीशे की तरह साफ है कि शिवसेना ने सिर्फ अपना मुख्यमंत्री बनाने के लिए बीजेपी का दामन छोड़ा तो वहीं कांग्रेस और एनसीपी ने सिर्फ बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने के लिए शिवसेना का साथ दिया। ये तीनों पार्टियां भले ही एक कॉमन मिनिमम प्रोग्राम के जरिए सरकार चलाने की बात कह रही हो लेकिन कई मुद्दों पर आने वाले दिनों में आमने सामने दिखाई दे तो किसी को हैरानी नहीं होगी।

शरद पवार की इच्छा और क्षमता पर ही टिकेगी ठाकरे सरकार

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दरअसल , ठाकरे सरकार कब तक चल पाएगी यह उद्धव ठाकरे और सोनिया गांधी से ज्यादा सिर्फ एक व्यक्ति की इच्छा और क्षमता ही तय करेगा और वह व्यक्ति है शरद पवार । कहा तो यहां तक जा रहा है कि ये सरकार कब तक चलेगी, इसका जवाब फिलहाल एक ही व्यक्ति के पास है और वो हैं शरद पवार। इस सरकार को बनाने में , अजित पवार को वापस लाने में , कांग्रेस को मनाने में सबसे अहम भूमिका निभाई है शरद पवार ने । इसलिए कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री भले ही उद्धव ठाकरे हो लेकिन इस सरकार का रिमोट कंट्रोल शरद पवार के पास ही होगा। महाराष्ट्र की राजनीति में पहली बार शरद पवार इतनी महत्वपूर्ण भूमिका में है जब शिवसेना जैसी पार्टी उनके अहसान तले दबी हुई है और कमजोर कांग्रेस ने राष्ट्रीय पार्टी होने के बावजूद सब कुछ शरद पवार को सौंप दिया है । निश्चित तौर पर इस हालात में पवार अपनी मेहनत की कीमत वसूलना चाहेंगे। मंत्रालय से लेकर सरकार के काम-काज तक , राज्य भर में फैले सहकारी संस्थाओं और बैंकों तक – हर जगह पवार अपने हिसाब से मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को चलाने की कोशिश करेंगे। शुरुआत में तो यह चलेगा लेकिन शिवसेना की कीमत पर उद्धव इसे कब तक बर्दास्त कर पाएंगे , यह बड़ा सवाल है ?

सोनिया गांधी कांग्रेस बनाम राहुल गांधी कांग्रेस

कांग्रेस का हर छोटा-बड़ा नेता यह स्वीकार कर रहा है कि सोनिया गांधी की वजह से ही महाराष्ट्र में बीजेपी को सत्ता से बाहर रखने में कांग्रेस को कामयाबी मिल पाई है । कांग्रेसी यह मान रहे हैं कि अगर सोनिया गांधी की जगह पर शरद पवार को राहुल गांधी के साथ बात करने को कहा जाता तो शायद प्रदेश में उन्हे यह कामयाबी नहीं मिल पाती । वैसे तो गठबंधन सरकारों को समर्थन देने और चलाए रखने के मामले में कांग्रेस का रिकॉर्ड खराब ही रहा है। इस तरह की सरकारों को कांग्रेस बीच में ही समर्थन वापस लेकर गिराती रही है लेकिन इस बार कांग्रेस की समस्या कुछ अलग ही है । संजय निरूपम की बयानबाजी से यह तो साफ हो ही चुका है कि कांग्रेस में मौजूद राहुल गांधी खेमा इस सरकार के गठन से खुश नहीं है । ऐसे में जिस दिन सोनिया गांधी पार्टी की कमान फिर से राहुल गांधी को सौंपेगी या प्रियंका गांधी को थमाएगी , ठाकरे सरकार की उल्टी गिनती शुरु हो जाएगी।

ऑपरेशन लोटस – अब क्या करेगी बीजेपी ?

महाराष्ट्र में ठाकरे सरकार कब तक चल पाएगी यह शरद पवार और कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी के रूख पर भी काफी हद तक निर्भर करेगा। नंबर के मामले में बीजेपी फिलहाल भले ही हार गई हो लेकिन कर्नाटक का उदाहरण सबके सामने है । निश्चित तौर पर बीजेपी के लिए इस हार को पचाना आसान नहीं है । इसलिए बीजेपी के रूख पर भी इस सरकार का भविष्य काफी हद तक निर्भर करता है । अगर गठबंधन के 35-40 विधायकों से कर्नाटक की तर्ज पर बीजेपी एक-एक करके इस्तीफा दिलवा दे और बहुमत की सरकार को अल्पमत में ला दे तो फिर गठबंधन सरकार को इस्तीफा देना ही पड़ेगा। हालांकि इतनी बुरी तरह से मात खाने के बाद बीजेपी कब ऑपरेशन लोटस चला पाने की हिम्मत जुटा पाती है , यह कहना फिलहाल मुश्किल है । लेकिन इतना तो तय है कि आने वाले दिनों में अजित पवार , प्रफुल्ल पटेल , छगन भुजबल जैसे नेताओं की फाइलों पर तेजी से एक्शन होगा और हर बड़ा एक्शन इस सरकार की मजबूती को लगातार कम ही करता दिखाई देगा। ठाकरे सरकार कितनी तेजी से देवेन्द्र फडनवीस के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करती है , इस पर भी काफी कुछ निर्भर करेगा ।

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शिवसेना को भी है आभास – इसलिए सामना में दिया जवाब

सरकार की स्थिरता को लेकर शिवसेना के मन में भी संशय है इसलिए उद्धव ठाकरे के शपथ ग्रहण समारोह के दिन ही शिवसेना के मुखपत्र सामना संपादकीय के जरिए इसका जवाब देने की कोशिश की गई । सामना में लिखा गया कि,

“ कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस और शिवसेना की सरकार तीन पैरों पर खड़ी है और ये नहीं टिकेगी’, ऐसा शाप देवेंद्र फडणवीस ने शुभ मुहूर्त पर दिया है. लेकिन ये उनका भ्रम है. ये सरकार राष्ट्रीय मुद्दों पर नहीं बल्कि महाराष्ट्र और विकास के मुद्दों पर बनी है तथा राज्य के विकास के लिए तीनों पार्टियों में कोई मतभेद नहीं है. शरद पवार जैसे अनुभवी मार्गदर्शक हमारे साथ हैं. तीनों पार्टियों में प्रशासनिक जानकारी रखनेवाले लोगों की फौज है. मुख्य बात ये है कि किसी के मन में एक-दूसरे के प्रति मैल नहीं है. सरकार अपना काम करे और गत चार दिनों में जो कुछ हुआ, उस कीचड़ में पत्थर न फेंकते हुए विरोधी दल सकारात्मक नीति अपनाए. लोकतंत्र के यही संकेत हैं. दहशत पैदा करके सरकार बनाने और गिराने का खेल देश में गत 5 साल चला. महाराष्ट्र इन सब पर भारी पड़ गया.”

फिलहाल तो भारी पड़ गया लेकिन क्या आगे भी भारी पडेगा और पड़ता रहेगा , यही बड़ा सवाल है । जिसके जवाब पर ही ठाकरे सरकार का भविष्य टिका हुआ है ।