Covid 19- सबकी मदद को आगे आया भारत,UNSC में जल्द मिलनी चाहिए स्थायी सदस्यता

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By संतोष पाठक, वरिष्ठ पत्रकार

एक पुरानी कहावत है कि संकट के समय ही व्यक्ति के चरित्र का पता चलता है। कहावत यह भी है कि संकट की गोद से ही मजबूत नेतृत्व अर्थात मजबूत शासक का उदय होता है। कोरोना संकट ऐसा ही क्षण है जब दुनिया के सामने एक बार फिर देशों की कलई खुल रही है। दुनिया यह देख रही है कि किस प्रकार से तथाकथित महाशक्तियों ने इस बीमारी के आगे घुटने टेक दिये हैं। दुनिया यह भी देख रही है कि जिस कथित उभरती हुई महाशक्ति को उन्होंने अपने-अपने देश में फलने-फूलने दिया, जिस देश ने दुनिया के सभी देशों की नागरिकों की क्रय क्षमता का इस्तेमाल अपने व्यापार को बढ़ाने में किया। जिसने व्यापारिक उन्नति का इस्तेमाल कूटनीतिक मैदान में करते हुए पहले पड़ोसी देशों को धोखा देने में किया और बाद में वह इतना ताकतवर हो गया कि अमेरिका और यूरोप के देशों को हड़काने लगा।

दुनिया को धोखा देकर भी नहीं सुधरा चीन

आज उसी देश चीन ने दुनिया को धोखा दे दिया। सारी मानवता के लिए एक खतरा पैदा कर दिया। चीन भले ही इस मामले में कितनी भी सफाई देने की कोशिश करे लेकिन सारे तथ्य यह बताते हैं कि कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है। सारी दुनिया जब दिसंबर के महीने में नए साल के आगमन के लिए जश्न की तैयारी में जुटी हुई थी ठीक उसी समय चीन के वुहान प्रांत में कुछ तो ऐसा किया जा रहा था जिसने पूरी मानवता को खतरे में डाल दिया।

उसके बाद के 4 महीनों में भी एक-एक करके चीन और उसके साथी देश की कलई खुलती चली गई। दुनिया ने देखा कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के 5 स्थायी देशों में से एक चीन इस बीमारी का न केवल जनक बना बल्कि उसने पूरी दुनिया से कोरोना से जुड़े तथ्यों को छुपाने का आपराधिक षड्यंत्र भी किया। पी-5 समूह का सबसे ताकतवर देश अमेरिका खुफिया जानकारी होने के बावजूद इस चीनी वायरस से अपने देश को बचा नहीं पाया। गौरवशाली इतिहास और एक दौर में दुनिया पर राज करने वाले ब्रिटेन के शाही परिवार और प्रधानमंत्री तक इस चीनी वायरस की चपेट में आ गए। चौथे स्थायी सदस्य फ्रांस की हालत हम सब जानते हैं। तमाम चौकसी के बावजूद सुरक्षा परिषद का पांचवा स्थायी देश रूस भी अपने आपको इस चीनी वायरस से बचा नहीं पाया।

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ऐसे समय में जब पूरी दुनिया के सामने कोरोना महामारी का कहर फैला हुआ है। हर देश इससे जूझ रहा है। पिछले कुछ दशकों में पहली बार मानव जाति के सामने वैश्विक स्तर पर इतना बड़ा संकट आ गया है लेकिन दुनिया को सुरक्षित बनाने की जिम्मेदारी उठाने वाले ये देश कर क्या रहे हैं। चीन की बदनीयती का आलम तो देखिए कि अभी वो कुछ दिनों पहले तक भारत से मदद की गुहार लगा रहा था क्योंकि अमेरिका समेत कई देश कोरोना वायरस को चीनी वायरस की संज्ञा दे रहे थे और अब उसे कश्मीर के हालात को लेकर चिंता होने लगी है। चीन की शह पर उछलने वाला पाकिस्तान अपने देश के कोरोना पीड़ितों की मदद करने की बजाय अभी भी भारत-पाक नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन कर गोलीबारी करने में लगा हुआ है।

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मानवता के रक्षक के रूप में फिर से उभरा भारत

इन महाशक्तियों की तुलना में अब जरा भारत के बर्ताव को देखिए। एक तरफ जहां भारत लॉकडाउन और सामाजिक दूरी जैसे उपायों के सहारे चीन से पैदा हुए कोरोना वायरस संक्रमण को हराने की कोशिश कर रहा है तो साथ ही दूसरी तरफ दुनिया के अन्य देशों की मदद भी कर रहा है। भारत संयुक्त राष्ट्र में कश्मीर पर चीन के नापाक बयान का मुंह-तोड़ जवाब भी दे रहा है। सीमा पर संघर्ष विराम का उल्लंघन करने वाली पाकिस्तानी सेना को सबक भी सीखा रहा है। घरेलू स्तर पर भारत को नासमझ और बेवकूफ लोगों की ऐसी जमात से भी जूझना पड़ रहा है जो धर्म के नाम पर अनजाने या जानबूझकर कोरोना संक्रमण को फैलाने में लगे हैं । भारतीय धर्मनिपेक्षता के विभत्स रूप का लाभ उठाने के लिए हमारे शत्रु देशों ने बॉर्डर पर ऐसे लोगों का जत्था तैयार कर रखा है जो मौका मिलते ही भारत में घुस कर कोरोना संक्रमण को फैलाने का मंसूबा पाले बैठे हैं।

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लेकिन इतने मोर्चों पर एक साथ लड़ने के बावजूद मानवता की रक्षा के नाम पर भारत दुनिया की मदद कर रहा है। पड़ोसी देशों ( जिसमें पाकिस्तान भी शामिल है) की मदद करने के लिए भारत ने सार्क देशों के स्तर पर कोरोना से लड़ने के लिए विशेष कोष बनाने की पहल की। इसके लिए कोविड-19 आपातकालीन फंड बनाया गया। सार्क संगठन में भारत और पाकिस्तान के अलावा श्रीलंका, नेपाल, अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भूटान और मालदीव शामिल है।

कोरोना से लड़ाई में मदद करने के लिए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप, इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू, ब्राजील के राष्ट्रपति बोल्सोनारों के अलावा स्पेन और ऑस्ट्रेलिया समेत दुनिया के कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष दिल खोल कर भारत की तारीफ कर रहे हैं, भारत को सार्वजनिक मंच पर धन्यवाद कह रहे हैं। कोरोना की इस महामारी ने दिखा दिया है कि वैश्विक स्तर पर कौन सा देश सबके हितों की बात सोचता है और कौन सा देश सिर्फ नाटक करता है, षड्यंत्र रचता है। इसलिए दुनिया के सभी देशों को कोरोना महामारी को हराने के बाद नए सिरे से एक दूसरे के बारे में सोचना पड़ेगा, एक दूसरे से संबंध बनाना पड़ेगा। अब कोई चाहे न चाहे, पसंद करे या न करे, भारत वैश्विक स्तर पर एक महाशक्ति के रूप में स्थापित हो चुका है और आज या कल दुनिया को भारत को उसका सही हक देना ही पड़ेगा।

अमेरिका, रूस , ब्रिटेन, फ्रांस के अलावा जर्मनी, जापान, इजरायल, दक्षिण अफ्रीका और ब्राजील सहित दुनिया के तमाम बड़े और महत्वपूर्ण देशों को अब आगे आकर कई दशक पहले की गई गलती को सुधारने के लिए आगे आना ही पड़ेगा। इन तमाम देशों को एकजुट होकर चीन के षड्यंत्र का जवाब देना ही होगा। चीन को सुरक्षा परिषद से बाहर का रास्ता दिखा कर न केवल भारत को इसका स्थायी सदस्य बनाया जाए बल्कि साथ ही जर्मनी, जापान, दक्षिण अफ्रीका और इंडोनेशिया जैसे देशों को परिषद में बड़ी भूमिका देकर इसका लोकतांत्रिकरण विस्तार करना भी समय की मांग हैं। ऐसा होने पर ही संयुक्त राष्ट्र फिर से मजबूत हो पायेगा और कोरोना महामारी जैसी अंतर्राष्ट्रीय चुनौतियों से प्रभावी ढंग से लड़ेगा भी और जीतेगा भी।

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( लेखक- संतोष पाठक, वरिष्ठ पत्रकार हैं और इन्होंने डेढ़ दशक तक सक्रिय टीवी पत्रकार के तौर पर राजनीतिक पत्रकारिता की है )