लोक आस्था का महापर्व – छठ पूजा

By प्रतिभा त्रिपाठी सरकार, शिक्षिका

आप विश्व के किसी कोने में रहते हो, त्यौहारों की असली चमक दमक, भारत के अलावा शायद ही कहीं देखने को मिले।

भारत के हर राज्य में एक विशेष लोकपर्व मनाया जाता है।
सूर्योपासना का एक अनुपम पर्व, भारत के बिहार, झारखंड एवं पूर्वी उत्तर प्रदेश में बड़े ही हर्षोल्लास से मनाया जाता हैं । धीरे-धीरे यह पर्व पूरे भारत के साथ विश्व भर में प्रचलित हो रहा है।

प्रकृति की आराधना का पर्व है छठ पूजा

सूर्य षष्ठी व्रत नाम से जाने जाने वाला यह व्रत सूर्य, उषा, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मइया को समर्पित हैं। इस व्रत में मूर्ति पूजा नहीं होती। इस व्रत को बहुत ही कठोर अनुष्ठान कहा जाता हैं, इस व्रत में पवित्रता का खासा ध्यान रखा जाता हैं।

चार दिनों का महापर्व है छठ 

छठ का यह महापर्व चार दिनों में संपन्न होता है। पहले दिन व्रती स्नान करके, पूर्ण स्वच्छता के साथ सात्विक भोजन बनाती हैं, जिसमें विशेष रूप से अरहर की दाल, चावल और लौकी की सब्जी होती हैं, उसे व्रती द्वारा खाया जाना “नहा-खा” कहलाता है। इसके बाद दूसरे दिन व्रती निर्जला व्रत रखते हुए अलग कमरे में मीठा भोजन बनाती हैं तथा उसे छठी मइया को समर्पित करके स्वयं ग्रहण करती हैं।

तीसरे दिन फिर से स्नानादि के उपरांत पूरे दिन और पूरी रात व्रत रखती हैं, उस दिन शाम के अर्घ्य के लिए ठेकुआ बनाया जाता हैं, “ठेकुआ” विशेष प्रसाद माना जाता हैं। घर के पुरूष यथाशक्ति फलों को लाते हैं तथा उसे स्वच्छ करके दौरे में सजाते हैं।
साथ ही जिस घाट पर पूजन की व्यवस्था की जाती हैं, वहाँ मिट्टी या बालू से “वेदी” बनाया जाता हैं तथा गन्ने का मंडप तैयार किया जाता हैं। शाम होते ही घर के पुरूष दौरे को सिर पर उठाए तथा महिलाएँ गीत गाते हुए घाट पर पहुँचते हैं। “कांच ही बांस के बहंगिया, बंगाल लचकत जाएं” गीत से पूरा घाट गूंज उठता हैं, बच्चे हो या बूढ़े सभी का उत्साह देखने योग्य होता है।

इसे भी पढ़ें :  अयोध्या में बन रहे भव्य राम मंदिर की विशेषताओं के बारे में आपने पढ़ा है क्या !

व्रती घाट पर बने वेदी पर पहुँच कर विधिपूर्वक पूजन करती हैं, और नदी के जल में उतरकर डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं।
उस के बाद घर आकर छठी मइया का गीत गाते हुए जागरण करती हैं, अगले दिन यानि चौथे दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नानादि करके शाम के दिए गए अर्घ्य को बदलकर नया अर्घ्य तैयार करती हैं और घाट पर पहुँच कर, वेदी पर पूजन के बाद सूर्य के निकलने की प्रतिक्षा करती हैं, तथा सूर्य को उदय होता देख जल में उतरकर, उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देती हैं तथा अपने और अपने परिवार की सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करती हैं।

प्रसाद वितरण के उपरांत स्वयं प्रसाद ग्रहण करके व्रत खोलती है।इस प्रकार सूर्य षष्ठी व्रत संपन्न होता है।

जय छठी मैया…जय…जय… छठी मैया