हटो जरा, उजाला आने दो….

By नरेंद्र राठी, वरिष्ठ नेता- कांग्रेस

हटो जरा, उजाला आने दो

हटो जरा, उजाला आने दो,
हटा दो नफरत की दीवारें,
बुझा दो जलते ये अंगारे,
मिटा दो आपस से,
जाति, धर्म के ये साये,
इन आंधियों को रोको,
दिया यह बुझ ना पाए,
करो उजागर पापो को,
पापी कोई छुप ना पाए,
हो उजियारा चहुं ओर,
दिये से दिया जलाने दो।
हटो जरा,उजाला आने दो।।

काली काली सी छाया,
हर शख्स है थर्राया,
हिम्मत दिल में रख ,
करो अंधेरे का सफाया,
बंजर धरती को जोत,
फूल यहां खिलाने दो,
क्यों बदबू है धरा पर,
खुशबू से महकाने दो,
चांद निकलता ये देखो,
रोशनी यहां फैलाने दो,
हटो जरा,उजाला आने दो।।

अंधेरा छटने दो,
धूप बटने दो,
रात गई अंधियारी,
भोर हुई उजियारी,
मातम को जाने दो,
खुशियां अब आने दो,
सूरज आया लाली लेकर,
किरणों को फैलाने दो।
हटो जरा,उजाला आने दो।।

(कवि- नरेंद्र राठी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और उत्तर प्रदेश के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर के सचिव रह चुके हैं।)

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