धरती के स्वर्ग पर फिर बजी खतरे की घंटी

कंचन पाठक, लेखिका एवं स्तम्भकार

बहुत धीरे-धीरे अब जाकर कश्मीर ने सामान्य सांसे लेनी शुरू ही की थी कि पहलगाम में फिर से यह सब शुरू होना बहुत बड़े खतरे की ओर इशारा है। कश्मीर जो लंबे समय से आतंकवादी खून खराबों से बेहाल और बदहाल रहा है अभी-अभी तो दोबारा से पर्यटकों की आवाज़ाही से यह घाटी गुलजार होना शुरू हुआ था। लंबे समय से गोलियों बमों के धमाकों से थर्राया हुआ यह धरती का स्वर्ग अभी-अभी अपने उजड़े रंगरूप को संवारने की ओर बढ़ा ही था कि पहलगाम में आतंकियों द्वारा 27 पर्यटकों की गोली मारकर हत्या कर दी गई।

सबसे आश्चर्य की बात तो ये है कि चप्पे-चप्पे पर सुरक्षा व्यवस्था, लाखों की तादाद में चाक चौबंद सेना के जवानों, सैनिक अर्धसैनिक बलों की लगातार उपस्थिति और निगरानी के बावजूद ये दहशतगर्द घाटी में घुसे तो कैसे ?

अभी कुछ दिनों पहले ही मैं कश्मीर होकर आई हूं। ..वहाँ की बहुत सारी सुखद यादें लेकर. वहाँ की खूबसूरती, वहाँ के लोगों की गर्मजोशी से भरी मेहमान नवाज़ी कभी न भूलने वाली घटनाओं में से एक हैं। टैक्सी वाले, घोड़े वाले, शिक़ारे वाले समेत बहुत सारे स्थानीय लोगों से हमने पूछा कि क्या अब आप लोग खुश हैं और उनके चेहरे चमक उठे सबने यही कहा कि हम बहुत खुश हैं, हमें आतंकवाद नहीं चाहिए। हमने बरसों तक बमों के धमाके झेले हैं, हमें शांति चाहिए. इन धमाकों से, मार काट से हमें क्या मिला। इन आतंकियों ने हमारे रोज़गार छीन लिए. पर्यटकों की आवाजाही खत्म होने से हमारे घरों में चूल्हे जलने पर भी आफत रहती थी। अब कम से कम हमें दो जून की रोटी के लिए सोचना नहीं पड़ता.
वहाँ के स्थानीय बाशिंदे आतंकवादियों के खिलाफ़ हैं क्योंकि इन आतंकियों ने उनके व्यवसायों पर, उनके पेट पर लात मारकर उन्हें ग़रीब और बेबस बनाया था। कश्मीर के ऐसे ही बहुत से स्थानीय लोगों ने खुल कर केन्द्र के सपोर्ट की बात कही पर इन सबके बाद भी अगर कहीं कोई निवासी दहशतगर्दों की मदद कर रहा है तो तुरंत उसे ढूँढ कर निकालने की जरूरत है । अन्यथा दोषियों के साथ निर्दोष भी पिसेंगे ।

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जैसा कि हम जानते हैं कि कश्मीर की पूरी अर्थव्यवस्था पर्यटन पर निर्भर है और पहलगाम की इस घटना के बाद एक बार फिर से पर्यटकों का आना बंद हो जाएगा. फिर से उनके रोजगारों पर ताले पड़ जाएँगे।

निष्कर्ष –
बहुत लंबे समय से चल रहा उग्रवाद अब जब समाप्ति की ओर था ऐसे में पहलगाम की ये घटना कह रही है कि कहीं कुछ कमी रह गई है सो दहशतगर्दों को अब जड़ से कुचलना जरूरी है। चप्पे-चप्पे पर सैनिक व्यवस्था के बावजूद ऐसे कृत्य का होना डरा रहा है। ये आतंकवादी दोबारा से घाटी में मौत का तांडव शुरू करें उसके पहले देखना होगा कि कहाँ से ढील मिली है।

उपाय –
स्थानीय निवासी दहशतगर्दों के विरोध में खुल कर आएँ। संगठित होकर और सेना के साथ मिलकर मानवता के इन दुश्मनों के विरुद्ध खड़े हो जाएँ। इन्हें आश्रय, राशन समेत किसी भी तरह की सुविधा मुहैया कराना तत्काल बन्द करें। इन्हें घेर कर इनकी पूँछ उमेठ कर खदेड़ना शुरू करें ताकि इन दरिन्दों की कमर टूट जाएँ। अगर स्थानीय लोग चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो इसका एक कारण इन आतंकियों के पास अत्याधुनिक हथियारों का होना हो सकता है। भारत सरकार को सुरक्षा संघ के साथ मिलकर शीघ्र निदान सोचना होगा। दहशतगर्दों को किसी भी तरह की मदद तुरंत बंद करने का दवाब बनाना होगा, सम्मिलित सैनिक कार्रवाई, हत्यारों को पकड़ कर बिना किसी नर्मी के फांसी जैसा कठोर दण्ड देना होगा तभी इस पर लगाम लगाई जा सकेगी।

-कंचन पाठक
लेखिका एवं स्तंभकार

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( इस लेख में लेखिका के अपने विचार हैं।)