दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी को मिली प्रचंड जीत से एक बात बिल्कुल साफ है कि कांग्रेस का पूरा वोट बैंक केजरीवाल के नाम पर आम आदमी पार्टी की तरफ शिफ्ट हो गया। कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक अपर कास्ट और दलित आप की झोली में तो गया ही साथ ही भाजपा हराओ की मुहिम और लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मुस्लिम समुदाय ने भी कांग्रेस को छोड़कर आम आदमी पार्टी के समर्थन में वोट दिया।
सही मायनों में कहा जाए तो शीला दीक्षित के जमाने में जो वोट बैंक कांग्रेस के पास था , आज उससे भी ज्यादा अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी के पास है। शीला दीक्षित के जमाने में भी दिल्ली में मायावती की बहुजन समाज पार्टी और जनता दल का अस्तित्व था । इन दोनों ही दलों के पास मजबूत , स्थायी और टिकाऊ वोट बैंक था। लेकिन केजरीवाल की बयार में यह सब बह गया। कांग्रेस , जनता दल , बसपा इन सभी के मतदाताओं पर आज आप का राज है और मुकाबले में सिर्फ भाजपा है। कांग्रेस के लिए तो इतना ही कहा जा रहा है कि वो दिल्ली में अपनी आखिरी सांसे गिन रही है।
जो हालत दिल्ली में आज कांग्रेस की हुई है , उसी तरह की हालत अब देश के कई राज्यों में पैदा होने का खतरा कांग्रेस के लिए बढ़ता जा रहा है। दरअसल , देश भर में कांग्रेस इसीलिए कमजोर होती चली गई क्योंकि उसका वोट बैंक दूसरे दलों की तरफ खिसकता चला गया। उत्तर प्रदेश में एक जमाने की मजबूत पार्टी कांग्रेस ने सरकार बनाने के लिए मुलायम सिंह यादव को समर्थन दिया तो मुसलमान हमेशा के लिए समाजवादी पार्टी के साथ चले गए। बसपा के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ा तो बचा-खुचा दलित मतदाता भी पहले कांशीराम और अब मायावती के नाम हाथी पर वोट डालता है। बिहार में लालू की सरकार बचाने के लिए समर्थन दिया तो आज नतीजा यह है कि अपनी पार्टी के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए उसी आरजेडी से सीटों की मिन्नत करनी पड़ती है।
जम्मू-कश्मीर , महाराष्ट्र , पश्चिम बंगाल , आंध्र प्रदेश से लेकर तमिलनाडु तक , उत्तर भारत से लेकर दक्षिण भारत तक कांग्रेस की यही कहानी रही है। ज्यादातर राज्यों में नए राजनीतिक दलों ने पहले कांग्रेस का साथ लेकर अपनी जमीन को मजबूत किया और फिर कांग्रेस के वोट बैंक को साधकर ही सरकार बनाई और बेहाल कांग्रेस अपनी हालत से दुखी होने की बजाय भाजपा की हार का जश्न मनाने में लगी है।
सकारात्मक राष्ट्रवाद के जरिए राष्ट्रीय विस्तार की योजना
दिल्ली की प्रचंड जीत से उत्साहित आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय विस्तार तो करना चाहती है लेकिन इस बार तौर-तरीका 2014 से बिल्कुल अलग होगा। पार्टी 2014 की गलती कतई नहीं दोहराना चाहती है। रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण के बाद अरविंद केजरीवाल का वहां मौजूद लोगों से यह कहना कि , ” अपने गांव फोन करके बता देना कि आपका बेटा चुनाव जीत गया है, अब चिंता की कोई बात नहीं है ” अपने आप में यह बताने के लिए काफी है कि अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का विस्तार राज्य से बाहर भी करना चाहते हैं।
लेकिन इस बार आम आदमी पार्टी तेज गति की बजाय संभल कर राष्ट्रीय स्तर पर विस्तार करते हुए दिखाई देगी। बताया जा रहा है कि पार्टी ने इसके लिए तीन सूत्री कार्ययोजना तैयार कर ली है। इसके तहत पहले सभी राज्यों में सक्रिय वोलिएंटर्स की बैठकें की जाएंगी। इसके बाद मिस्ड कॉल अभियान के जरिए लोगों को राष्ट्र निर्माण के अभियान के तहत पार्टी से जोड़ा जाएगा। पार्टी की योजना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव से पहले स्थानीय निकायों जे चुनाव में जोर-आजमाइश की जाए। देश के कई राज्यों में स्थानीय निकायों के चुनाव होने वाले हैं और जहां-जहां भी संभव हुआ पार्टी पूरे दम खम के साथ चुनावी मैदान में उतरेगी। पार्टी सकारात्मक राष्ट्रवाद के एजेंडे के साथ विस्तार अभियान चलाएगी। देश भर से आये पार्टी नेताओं की बैठक के बाद यह तय किया गया कि आम आदमी पार्टी 23 फरवरी से 23 मार्च तक देश के सभी राज्यों में कुल मिलाकर 1 करोड़ लोगों को पार्टी से जोड़ने का अभियान चलाएगी। देश के सभी राज्यों और राज्यों के प्रमुख शहरों में आने वाले दिनों में आप नेता प्रेस कांफ्रेंस करते हुए भी नजर आएंगे। साफ-साफ नज़र आ रहा है कि इस बार आम आदमी पार्टी जमीनी धरातल पर अपनी पकड़ मजबूत करने के बाद ही चुनावी मैदान में उतरेगी।
पस्त कांग्रेस के वोट बैंक पर आप की नज़र
आम आदमी पार्टी खुद भी इस बात को समझती है कि कांग्रेस से निराश लोगों ने उसकी जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है । यह फॉर्मूला देश के कई राज्यों में आजमाया जा सकता है। राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस नेतृत्व के संकट से गुजर रही है। सोनिया गांधी फिलहाल पार्टी की अंतरिम राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं लेकिन उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं रहता इसलिए वो चाहती हैं कि फिर से राहुल गांधी ही पार्टी की बागडोर संभाल ले। राहुल इंकार कर चुके हैं और सोनिया गांधी परिवार के बाहर किसी व्यक्ति पर भरोसा नहीं करना चाहती है। राज्यों में भी जहां-जहां कांग्रेस की सरकार है वहां-वहां गुटबाजी चरम पर है। राजस्थान में गहलोत बनाम पायलट की लड़ाई चल रही है तो मध्य प्रदेश में कमलनाथ बनाम सिंधिया की। बाकी देश के कई राज्यों की जनता तो यह मान ही चुकी है कि कांग्रेस में भाजपा का मुकाबला करने की हिम्मत नहीं है। दिल्ली के चुनाव ने तो यह खासतौर से बता दिया है कि देश का मुस्लिम समुदाय कांग्रेस से पूरी तरह विमुख हो चुका है और जहां-जहां उसे भाजपा को हराने के लिए बेहतर विकल्प मिलेगा , वो उसके साथ चला जाएगा। भाजपा विरोधी अन्य मतदाताओं का भी बड़ा समूह अब कांग्रेस की बजाय भाजपा से मुकाबला करने वाले दल के साथ ही जायेगा।
आप का विस्तार-कांग्रेस के अस्तित्व पर संकट
आप 2022 में दिल्ली में होने वाले नगर निगम चुनाव को भी जोर-शोर से लड़ेगी। इसके अलावा मध्य प्रदेश, गुजरात , महाराष्ट्र , राजस्थान जैसे राज्यों में भी पार्ट दम-खम के साथ निकाय चुनावों में उतरेगी । जाहिर सी बात है कि इन राज्यों में जैसे-जैसे आप मजबूत होती जाएगी वैसे-वैसे कांग्रेस कमजोर होती जाएगी। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में आप की मजबूती का नुकसान अखिलेश यादव और लालू यादव की पार्टी को भी उठाना पड़ेगा लेकिन फिलहाल चुनौती कांग्रेस के समक्ष ज्यादा है। कांग्रेस के दिग्गज और अनुभवी नेता इस खतरें को महसूस कर रहे हैं लेकिन पार्टी आलाकमान के सामने सच बोलने की हिम्मत भला किसमें है। विडंबना देखिए कि कई कांग्रेसी दिग्गज पार्टी की हार की समीक्षा करने की बजाय आप की जीत पर खुश होकर बयान दे रहे हैं।
राजनीतिक हालात भी अनुकूल है। दिल्ली में मिली प्रचंड जीत से कार्यकर्ता भी उत्साहित है। देश भर में केजरीवाल मॉडल की चर्चा हो रही है। सॉफ्ट हिंदुत्व वाला केजरीवाल स्टाइल ऑफ पॉलिटिक्स कामयाब होता भी नजर आ रहा है तो भला आप देश भर में छाने की कोशिश क्यों ना करें।
लेखक – संतोष पाठक (संपादक -पॉजिटिव ख़बर) , वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।