मात्र 25 वर्ष की उम्र में कैबिनेट मंत्री बनने वाली सुषमा स्वराज का सफ़रनामा पढ़िए. 

सबसे कम उम्र में मंत्री बनने वाली पहली महिला नेता . दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री . देश की पहली महिला विदेश मंत्री. सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान पाने वाली पहली महिला सांसद. आपका जाना भारत के लिए बहुत बड़ी क्षति है.. अलविदा सुषमा जी....

पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्‍वराज का मंगलवार 06 अगस्‍त 2019 को निधन हो गया. उन्‍होंने दिल्ली के एम्‍स अस्‍पताल में अंतिम सांस ली. मंगलवार शाम को ही उनको दिल का दौरा पड़ा और वह अचेत होकर गिर पड़ीं. इसके बाद उन्‍हें एम्‍स की इमरजेंसी में लाया गया और देर रात उन्‍होंने अंतिम सांस ली.

सुषमा स्‍वराज लंबे समय से किडनी की समस्‍या से पीडि़त थीं. 2016 में उनका किडनी ट्रांसप्‍लांट भी किया गया था, लेकिन इसके बाद से ही उनके स्‍वास्‍थ्‍य में लगातार गिरावट आती गई.

सुषमा स्वराज का जन्म और शिक्षा

सुषमा स्वराज का जन्म 14 फरवरी 1952 को हरदेव शर्मा और लक्ष्मी देवी के यहां अंबाला छावनी में हुआ था. इनके पिता राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रतिष्ठित सदस्य थे. सुषमा स्‍वराज ने राजनीति विज्ञान और संस्कृत जैसे से अंबाला छावनी के एसडी कॉलेज से ग्रेजुएशन की थी. 1970 में सुषमा स्‍वराज को अंबाला छावनी के एसडी कॉलेज में बेस्‍ट स्‍टूडेंट भी चुना गया था. इसके बाद सुषमा स्वराज ने चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय के कानून विभाग से एलएलबी की डिग्री हासिल की.

सबसे कम उम्र की कैबिनेट मंत्री

आपातकाल खत्म होने के बाद 1977 में उन्हें मात्र 25 वर्ष की उम्र में हरियाणा राज्य की कैबिनेट का मंत्री बनाया गया था और 27 वर्ष की उम्र में वे राज्य जनता पार्टी की प्रमुख बन गई थीं.बहुत कम लोगों को पता होगा कि सुषमा स्वराज और उनके पति उस समय जॉर्ज फर्नाडीस के वकील हुआ करते थे.

सुषमा स्वराज ट्वीटर

सुषमा स्वराज का राजनीतिक जीवन 

सुषमा स्‍वराज ने 1973 में सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू की थी. उनका राजनीतिक करियर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के साथ शुरू हुआ था. वह छात्र जीवन से ही प्रखर वक्ता रहीं. सुषमा स्‍वराज ने आपातकाल के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाई थी. जुलाई 1977 में उन्हें चौधरी देवीलाल की कैबिनेट में मंत्री बनाया गया था. 27 वर्ष की उम्र में वह 1979 में प्रदेश में जनता पार्टी (हरियाणा) की अध्यक्ष बन गई थीं.

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सुषमा स्‍वराज अप्रैल 1990 में सांसद बनीं और 1990-96 तक राज्यसभा सांसद रहीं. 1996 में वह 11वीं लोकसभा के लिए चुनी गईं और अटल बिहारी वाजपेयी की 13 दिन की सरकार में सूचना प्रसारण मंत्री बनीं. 12वीं लोकसभा के लिए वह फिर दक्षिण दिल्ली से चुनी गईं और दोबारा उन्हें सूचना प्रसारण मंत्रालय के अलावा दूरसंचार मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया.

अक्टूबर 1998 में उन्होंने केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा दिया और दिल्ली की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं. बाद में जब विधानसभा चुनावों में पार्टी हार गई तो वह राष्ट्रीय राजनीति में लौट आईं.

1999 में उन्होंने आम चुनावों में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के खिलाफ बेल्लारी संसदीय क्षेत्र, कर्नाटक से चुनाव लड़ा, लेकिन वे हार गईं. साल 2000 में वह फिर से राज्यसभा में पहुंचीं थीं और सूचना-प्रसारण मंत्री बनीं. वह मई 2004 तक सरकार में रहीं.

अप्रैल 2009 में वह मध्यप्रदेश से राज्यसभा के लिए चुनी गईं और राज्यसभा में प्रतिपक्ष की उपनेता रहीं. बाद में विदिशा से लोकसभा के लिए चुनी गईं और उन्हें लालकृष्ण आडवाणी के स्‍थान पर नेता प्रतिपक्ष बनाया गया.

अंग्रेजीदां विदेश मंत्रालय को हिन्दी से जोड़ा

2014 में नरेंद्र मोदी की सरकार में उन्हें विदेश मंत्रालय का दायित्व दिया गया . 5 वर्ष के अपने कार्यकाल में उन्होंने अंग्रेजीदां की छवि वाले इस मंत्रालय का पूरा कलेवर ही बदल दिया . मंत्रालय में हिन्दी को बढ़ावा मिला और अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के बाद पहली बार इस मंत्रालय में हिन्दी का वर्चस्व देखने को मिला . सोशल मीडिया के सहारे लोगों की मदद करने के अनोखे तरीके को भी उन्होंने इज़ाद किया जो दूसरे मंत्रियों के लिए हमेशा के लिए एक उदाहरण बन गया.

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विदा सुषमा जी …..अलविदा सुषमा जी……आप जैसा फिर कोई नहीं आएगा ….