अरहर सम्मेलन का नाम सुना है क्या आपने ?

उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के जिले बांदा में अरहर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है। बिल्कुल सही पढ़ा आपने ,इस बार राजधानी दिल्ली या प्रदेश की राजधानी लखनऊ की बजाय किसानों के खेतों में उनके लिए सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।

बुंदेलखंड के किसानों की आमदनी को अरहर और दलहन फसलों के सहारे 2022 तक दोगुना करने के लक्ष्य को लेकर एक आईएएस अधिकारी बांदा जिले में लगातार प्रयासरत है। अपने अनोखे प्रयोगों के जरिये लगातार चर्चा में रहने वाले बांदा जिले के जिलाधिकारी हीरा लाल के प्रयासों की वजह से जिले में 10 फरवरी को अरहर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।

बांदा के ऐतिहासिक स्थल कालिंजर में आयोजित इस अरहर सम्मेलन में देश भर के कृषि विशेषज्ञ,वैज्ञानिक, दलहनी-तिलहनी फसलें उगाने के लिए पदमश्री से सम्मानित किसानों और जानकारों को बुलाया गया है। इस सम्मेलन में किसानों को अरहर और दलहन की खेती से लेकर प्रसंस्करण की नई तकनीकों की जानकारी देंगे।

किसान इन नई जानकारियों के सहारे अपनी उपज बढ़ा पाएंगे। इसके साथ ही किसानों की अरहर की दाल बिग बाजार , स्पेंसर , बिग बाजार , वॉलमार्ट , ITC जैसे सुपर मार्केट में बिके , इसके लिए भी इस सम्मेलन में चर्चा की जाएगी।

बांदा जिलाधिकारी हीरा लाल के मुताबिक, 

” इस सम्मेलन में कृषि विभाग , मंडी विभाग और देश के कई संस्थानों के कृषि वैज्ञानिक शामिल हो रहे हैं। सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य है कि कैसे किसानों के प्रोडक्ट की मार्केटिंग की जाए ताकि भारत सरकार और यूपी सरकार के सपनों को साकार करते हुए 2022 तक किसानों की आमदनी को दोगुना किया जा सके।”

किसानों के प्रोडक्ट यानि अरहर और दलहन की पहुंच सीधे बाजार तक बनाने के साथ-साथ अरहर , चना , सरसो और गुड़ सहित कई फसलों को ब्रांड के रूप में स्थापित करने के लिए अरहर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है।

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अरहर-दलहन के लिए मशहूर रहा है बुंदेलखंड

आमतौर पर बुंदेलखंड को उसके पिछड़ेपन या सूखे के लिए जाना जाता है । बहुत कम लोगों को ही यह पता है कि उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड इलाका अरहर ,चना , सरसो जैसी दलहनी खेती के लिए भी जाना जाता है।

बात अगर सिर्फ बांदा जिले की ही कि जाए तो इस जिले में 17,753 हेक्टेयर में अरहर की खेती की जाती जो खरीफ के कुल क्षेत्र का 15 प्रतिशत से भी ज्यादा है। कुल रबी क्षेत्र के 36 प्रतिशत भाग 91,110 हेक्टेयर भूमि पर चने की खेती की जाती है। जिले में दलहनी फसलें किसानों की आय का प्रमुख स्रोत है। दलहनी फसलें मिट्टी की उर्वरता को तो बढ़ाती ही है साथ ही इन फसलों को सिंचाई के लिए भी बहुत कम पानी की जरूरत पड़ती है। इसलिए पानी की कमी से जूझ रहे बुंदेलखंड के लिए ये फसलें किसी वरदान से कम नहीं मानी जाती।

आपको बता दें कि दालों के पोषण संबंधी लाभों को प्रचारित एवं प्रसारित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रति वर्ष 10 फरवरी को विश्व दलहन दिवस के रूप में मनाता हैं। इस तरह से बांदा में आयोजित होने वाले इस अरहर सम्मेलन से संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों की भी पूर्ति होती है।