अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी और पत्रकारिता का भविष्य

By अमन माहेश्वरी, पत्रकारिता छात्र

अक्सर लोगों के दिनों की शुरुआत चाय की चुस्की के साथ होती है और कई लोगों के हाथ में सुबह-सुबह चाय के साथ समाचार पत्र होता है मानो वह दिनभर की खबरों को चाय के साथ पीना चाहते हैं ऐसा होना भी चाहिए अपने समाज, देश व दुनिया में हो रही घटनाओं से रूबरू होना बेहद जरूरी है।

 

सुबह-सुबह घरों में आने वाला समाचार पत्र की पत्रकारिता की शुरुआत माना जाता है लेकिन समय के साथ-साथ सब बदलता है और अब पत्रकारिता का नाम लेते ही लोगों के ज़हन में टीवी चैनल व न्यूज रूम की तस्वीर उभरने लगती हैं। हालांकि समाचार पत्र का महत्व आज भी वही है। पत्रकारिता का महत्व तो सब जानते ही हैं इसे ऐसे ही लोकतंत्र का चौथा स्तंभ नहीं कहा गया है। आज कल तो मानो न्यूज रूम में ही सरकारें बनती व बिगड़ती हैं। लोकतंत्र का चौथा स्तंभ पत्रकारिता हैं लेकिन समय समय पर मानो इसे कमजोर किया जाता रहा हैं। दिल्ली दंगों के दौरान पत्रकारों के साथ दुर्व्यवहार हो या हाल ही में न्यूज़ एंकर को गिरफतार करने की घटना सब पत्रकारिता को कमजोर करने की घटनाएं हैं। पहले पत्रकारिता शब्द सुनते ही हृदय में कलम व कागज की तस्वीर उभरती थी लेकिन अब पत्रकारिता शब्द सुनते ही हृदय में कलम की जगह माइक और कागज की जगह टेलीविजन स्क्रीन आती हैं जिस स्क्रीन पर एक व्यक्ति यानी एंकर चीख-चीख कर अपनी बात को कहता हैं।

 

यह पत्रकारिता की बदलती तस्वीर रही हैं आजादी से पहले पत्रकारिता को अंग्रेजों ने दबाया तो आज भी यह कसर मानो कुछ सरकारें व नेता पूरी कर रहे हैं। महाराष्ट्र सरकार द्वारा हाल ही में पत्रकार की गिरफ्तारी की गई हैं जिससें पता चलता हैं की सरकार किस तरह अपना बदला लेने पर उतारू हैं। वैसे तो पत्रकार की गिरफ्तारी किसी पुराने केस के कारण की गई है लेकिन पिछले दिनों गिरफ्तार पत्रकार व महाराष्ट्र सरकार के बीच जो संबंध थे उससे साफ हो जाता है कि यह संयोग नहीं साजिश है लेकिन कुछ बुद्धिजीवी वर्ग के लोग इस बात को समझ नहीं पा रहे हैं। टेलीविजन पत्रकार अर्नब गोस्वामी की गिरफ्तारी को लेकर सोशल मीडिया पर बहुत ही रोष देखने को मिल रहा है तो कुछ लोग मन ही मन मुस्कुरा रहे हैं।

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लोगों को एक पत्रकार की गिरफ्तारी से अधिक वैचारिक मतभेद करने का सुनहरा मौका दिख रहा है। पत्रकारिता का स्वतंत्र होना बहुत ही जरूरी है लेकिन आज एक पत्रकार की गिरफ्तारी होना आने वाले समय में पत्रकारिता की स्वतंत्रता पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। भले ही कुछ लोग इस गिरफ्तारी को लेकर खुश हैं लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर यह गलत हुआ है। और जो लोग यह कहकर गिरफ्तारी को सही ठहरा रहे हैं कि गिरफ्तारी पुराने केस में हुई हैं। तो उन्हें यह समझना चाहिए की ऐसे न जाने कितने केस नेताओं पर लगे हुए होंगे। तो समय आ गया हैं कि फाइलें खोली जाए और जेल भरी जाएँ।