यूपी में नवजात शिशुओं के लिए वरदान साबित हो रहा है कंगारू मदर केयर थेरेपी

समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों की रक्षा के लिए कंगारू के स्टाइल में उन्हे रखने की तकनीक का इस्तेमाल शुरू हो गया है । उत्तर प्रदेश के एक जिले में कंगारू मदर केयर थेरेपी का इस्तेमाल कर लगातार नवजात बच्चों की जान बचाई जा रही है ।

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में कंगारू मदर केयर सेंटर नवजात शिशुओं के लिए वरदान साबित हो रहा है । शिशु मृत्यु दर रोकने के लिए सरकार की यह कवायद अब सफल होती दिख रही है । यहां कम समय के जन्म लेने वाले कम वजन के नवजात शिशुओं को रखा जाता है जिस तरह से कंगारू अपने बच्चे को अपने सीने से लगाकर रखता है ठीक उसी तरह से कम समय के नवजात शिशु की माताएं उन्हें अपने सीने से लगाकर स्पर्श कराती हैं जिसकी वजह से माता के दिल की धड़कन सुनने से बच्चे को आराम महसूस होता है और उसके हृदय की गति सामान्य हो जाती है जिससे उसे अच्छी नींद भी आ जाती है । ऐसे में यह कहा जा सकता है कि कंगारू मदर केयर नवजात शिशुओं के लिए जीवनदान देने वाला साबित हो रहा है।

उत्तर प्रदेश के हरदोई जिले में जिला महिला चिकित्सालय में कंगारू मदर केयर सेंटर की शुरुआत 6 माह पहले दिसंबर 2018 में हुई थी । हरदोई के जिला महिला चिकित्सालय के मुख्य चिकित्सा अधीक्षक डॉ रवींद्र सिंह बताते हैं कि कंगारू मदर केयर में अब तक 101 नवजात शिशुओं को इस तकनीक का लाभ दिया जा चुका है और सभी बच्चे स्वस्थ होकर अपने घर जा चुके हैं । उनके मुताबिक इस तकनीक का उद्देश्य शिशु मृत्यु दर रोकने के लिए था और यह शिशु मृत्यु दर को रोकने में अहम भूमिका निभा रहा है।

दरअसल, कई बार बच्चों का जन्म समय से पहले ही हो जाता है । ऐसे में शिशुओं का वजन बहुत कम होता है उन्हे कई तरह की स्वास्थ्य समस्याओं का भी सामना करना पड़ता है। ऐसे समय में ही बच्चों की देखभाल के लिए चिकित्सक कंगारू मदर केयर देने की सलाह देते हैं। इस तकनीक में शिशु की माता अपने नवजात बच्चे को कुछ समय के लिए अपने अंग से चिपकाकर ठीक उसी प्रकार रखती है जैसे कंगारू अपने शिशु को अपने करीब चिपका कर रखता है और अपने बच्चे को गरमाहट देता है ऐसा करने से बच्चे की तकलीफ स्वतः दूर हो जाती है। इसी क्रिया से कंगारू मदर केयर तकनीक का जन्म हुआ है और यही वजह है कि इस तकनीक को कंगारू मदर केयर का नाम दिया गया है । यह तकनीक देते समय बच्चों को केवल डायपर ही पहनाया जाता है जो आगे की तरफ से खुला होता है जिससे कि उसका पूरा शरीर माता के करीब रह सके। ब्रेस्ट फीडिंग के दौरान नवजात को मां की छाती से चिपकाया जाता है , ऐसा करने से मां के सीने की गति और सांसो से बच्चे को गर्माहट मिलती है जिससे बच्चे की कई प्रकार की समस्याएं खुद-ब-खुद हल हो जाती हैं।

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प्रदेश सरकार इस तकनीक के बल पर राज्य भर में शिशु मृत्यु दर को कम करने की योजना पर काम कर रही है ।