अनुरंजन झा , वरिष्ठ पत्रकार की कलम से
2006-7 की बात है। इंवेस्टिगेटिव टीम कोबरा पोस्ट को लीड कर रहा था और फतवों पर स्टोरी की थी। कई अच्छे रिपोर्टरों की टीम इस खबर पर हमारे साथ थी। तकरीबन 2 दर्जन फतवे देश के अलग-अलग मुफ्तियों से खरीदे गए थे। अजीबोगरीब फतवे, दिलचस्प फतवे, उसमें एक मुफ्ती ने इस बाबत भी फतवा दिया था कि टीवी और फिल्मों में मुसलमानों के लिए काम करना हराम है।
इस बात को और ठोस तरीके से प्रमाणित करने के लिए उसने यह भी कहा था कि चूंकि ऐसा करना इस्लाम में हराम है,इसीलिए युसूफ खान ने दिलीप कुमार बनकर काम करना शुरू किया। बड़े गर्व से उस मुफ्ती ने वो फतवा महज 5 हजार में हमारी टीम को बेचा था। उस फतवे के लिहाज से आमिर, शाहरूख समेत सभी मुस्लिम कलाकारों को ऐसा काम नहीं करना चाहिए। अभिनेत्रियों के बारे में उनकी राय जो थी, वो तो माशाअल्लाह…। सबको वो जन्नत की वही हूर समझते थे, जो उनके जिहादियों के काम आती हैँ। ये सब बातें उस मुफ्ती ने कही थीं और उस वक्त करार के मुताबिक ये खबर तब के स्टार न्यूज (अब एबीपी न्यूज) पर चलाई गई थी। जाहिर है, हंगामा हुआ। पूरी टीम को महीनों धमकी वाले संदेश आते रहे। संदेश में यहां तक कहा गया कि तुम्हें दोजख नसीब होगा…इत्यादि-इत्यादि।
यह बातें हम आज इसलिए लिख रहे हैं कि कुछ इसी तरह की हरकत फिर एक बार हुई है और ऐसी ही बातों का हवाला देकर अभिनेत्री जायरा वसीम ने अभिनय छोड़ने की बात कही है। उनके हिसाब से उनका अभिनय करना इस्लाम और अल्लाह को मंजूर नहीं। उनके ईमान में दखल है। तो इसका मतलब हिंदुस्तान के उन सभी मुसलमान कलाकार जिनको हमने अपनी आंखों पर बिठाया है, क्या वो अपने ईमान के साथ धोखा करते हैं, पड़ोसी इस्लामी मुल्कों में जहां हमसे बेहतर नहीं तो कमतर भी नहीं कलाकार मौजूद हैं, क्या वो सब बेईमानी करते हैं। इस देश में आज भी लाखों मुसलमान नौजवान (लड़के-लड़कियां) मुंबई का रुख करते हैं, दिन-रात वहां सितारा बनने के लिए जद्दोजहद करते हैं, क्या उनका अपना कोई ईमान नहीं है।
दरअसल,ऐसा कहना इस्लाम और अल्लाह के साथ बेईमानी है। आपको दंगल गर्ल के तौर पर जायरा वसीम याद तो होंगी ही, साथ ही आपको यह भी याद होगा कि किस तरह जायरा ने हवाई यात्रा में एक सोते हुए व्यक्ति पर छेड़छाड़ का आरोप मढ़ दिया था। अभिनेत्री होने का फायदा उठाने के लिए खुद को एक बेसहारा लड़की के तौर पर पेश किया था और मीडिया की सुर्खियां बटोरी थीं। जायरा के ही साथ सफर करने वाले पैसेंजर ने सारी कहानी पुलिस के सामने बयान की और फिर उस शख्स को जमानत मिली। इतना ही नहीं, महबूबा से मुलाकात के बाद पाकिस्तान के पक्ष में अपने बयान को लेकर भी वो सुर्खियों में आ चुकी हैं।
जायरा को ईमान का यह पाठ पढ़ाते हुए अभिनय को कटघरे में खड़ा करने से पहले अपने गॉडफादर आमिर खान से कम से कम पूछना चाहिए था और उनको भी यह सलाह देनी चाहिए थी। अगर आमिर-शाहरूख का ईमान जायरा की तरह जाग जाए तो हम कितनी उम्दा कलाकारी देखने से महरूम रह जाएं, इसकी तो बस कल्पना ही की जा सकती है। यहां बात सिर्फ मुसलमानों के फिल्मी दुनिया पर काम करने नहीं, बल्कि उस दुनिया के तौर तरीकों पर सवाल है, जिसके सहारे लाखों परिवार पलते हैं, करोड़ों लोगों को दो जून की रोटी नसीब होती है। जायरा का यह बयान जितना हास्यापद है, उतना ही आपत्तिजनक है। आपको काम नहीं करना था तो बस नहीं करना था, कोई घर से खींच कर तो आपको काम करने के लिए लाता नहीं। यह ढोल पीटना किसलिए?
दरअसल, पिछले पांच सालों में कुछ खास नहीं कर पाने के कारण शायद जायरा अवसाद में हों। जायरा को यह मालूम होना चाहिए कि ‘दंगल’ फिल्म की सफलता आमिर खान औऱ उऩकी टीम की सफलता है और उसकी सीढ़ी पर चढ़ जो स्वाद इन्होंने चखा, वो इनका अपना नहीं था। अगर अभियन में ताकत होती तो दूसरी फिल्म तमाम कोशिशों के बाद भी लोगों में दिलों में जगह क्यों नहीं बना पाई, जबकि उसमें भी तो आमिर खान थे।
कुल मिलाकर देखें तो साफ लगता है कि दंगल की इस अभिनेत्री का अभिनय में करियर कुछ खास नहीं चल रहा है और उसे हिंदुस्तान ने जो दिया है, उसकी दरअसल वो उतनी हकदार नहीं थी। धर्म और इस्लाम के नाम पर भ्रम में डूबी हुई एक अति सामान्य मुस्लिम लड़की है, जो निहायत ही डरपोक और स्वार्थी है। अपने स्वार्थ से डर भरे बयान में इस लड़की ने धर्म का जो तड़का डाला है, वो निहायत ही घिनौना है। इस बयान के बाद तो हम मुंबई इंडस्ट्री से आग्रह करेंगे कि इसको कभी काम मत देना। इसलिए काम मत देना कि क्योंकि जिसने उसे अभी तक सब कुछ दिया, उसका अहसान जिस तरीके से चुकाया है, वह निहायत ही शर्मिंदा करने वाला है।