केंद्र सरकार द्वारा देश के कृषि क्षेत्र में सुधार के लिए लाए गए 3 ऐतिहासिक कानूनों को लेकर देश के कई राज्यों में बवाल मचा हुआ है। किसान दिल्ली की सीमा पर जबरदस्त आंदोलन कर रहे हैं। मंगलवार को कई केंद्रीय मंत्रियों ने किसान संगठनों के प्रतिनिधियों से लंबी बैठक भी की , हालांकि इसमें समझौते का कोई फार्मूला अभी तय नहीं हो पाया है। बैठक में केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एक समिति बनाने का सुझाव दिया जिसमें किसान संगठन के प्रतिनिधि, सरकार के लोग और कृषि विशेषज्ञ शामिल होंगे जो इन 3 कृषि कानूनों के सभी पहलुओं पर चर्चा करेंगे।
इस बीच भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय संगठन महामंत्री के एन गोविंदाचार्य भी लगातार किसानों की शंकाओं को दूर करने के लिए मोदी सरकार को सुझाव दे रहे हैं। किसी जमाने में भाजपा के ताकतवर नेता रहे और देश की राजनीति को काफी गहराई से समझने वाले गोविंदाचार्य का यह मानना है कि सरकार को तीन कृषि कानूनों से किसानों में व्याप्त आशंकाओं को दूर करने के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून बनाना चाहिए।
पिछले कुछ दिनों से गोविंदाचार्य लगातार सोशल मीडिया के जरिए सरकार को अपने सुझाव दे रहे हैं। आइए आपको बताते हैं कि हाल के दिनों में किसान आंदोलन को लेकर गोविंदाचार्य ने क्या-क्या लिखा है और सरकार को क्या-क्या सुझाव दिए हैं ।
के एन गोविंदाचार्य की सलाह – उन्ही के शब्दों में
कृषि उपज बाजार समिति कानून (#APMC Act) के अनुसार कृषि उपज बाजार समिति की मंडी में उपजों की बिक्री पर 6% मंडी टैक्स आदि लगता है। सरकार ने जो नया कानून लाया है, उसके अनुसार कृषि उपज बाजार समिति कानून के अंतर्गत गठित मंडियों के अलावा अन्य मंडियों में वह 6% टैक्स आदि नहीं लगेगा। अर्थात सरकारी मंडी और निजी मंडी में 6% लाभ का अंतर आ गया।
किसानों को आशंका है कि इस नए कानून के अनुसार निजी मंडियों में 6% टैक्स आदि नहीं लगना है, इसलिए 6% अतिरिक्त लाभ के लोभ में किसान निजी मंडियों में अपनी कृषि उपज बेचने जाने लगेंगे। निजी व्यापारी प्रारम्भ में न्यूनतम समर्थन मूल्य या उससे कुछ अधिक मूल्य पर कृषि उपज खरीदना शुरू कर देंगे। इन दो कारणों से धीरे धीरे सरकारी कृषि उपज बाजार समिति की मंडियों वीरान हो जाएंगी। जब वहां बहुत किसान जाना ही बंद कर देंगे तो उन मंडियों के आढ़तियों का व्यापार बंद हो जाएगा। वे अन्य व्यापार में लग जाएंगे। इस प्रकार सरकारी मंडियां बंद हो जाएंगी। 2-3 वर्ष में उन मंडियों के बंद हो जाने पर निजी व्यापारी मनमाना दाम तय करने लग जाएंगे। किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर बेचने के लिए मजबूर करने लग जाएंगें। चूंकि तब तक सरकारी मंडियां बंद हो चुकी होंगी, इसलिए किसानों के पास दूसरा कोई रास्ता ही नहीं बचेगा। किसानों का भीषण शोषण प्रारम्भ जो जाएगा। किसानी और भी घाटे का सौदा हो जाएगा।
इन्हीं आशंकाओं के कारण किसान नए कृषि कानूनों का विरोध करने सड़कों पर उतरे हैं। किसानों की इन आशंकाओं को न्यूनतम समर्थन मूल्य (#MSP) की गारण्टी देने वाला कानून ही दूर कर सकता है। जब कानूनी रूप से न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर खरीदना अपराध हो जाएगा, सरकारी मंडी हो निजी मंडी, व्यापारियों को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर ही खरीदना पड़ेगा। अगर उससे कम दाम पर खरीदेंगे तो कानून के अनुसार दंड मिलेगा।
अपनी मांगों के समर्थन में सड़कों पर उतरे किसानों की आशंकाओं को दूर करने और उन्हें आश्वस्त करने के लिए सरकार शीघ्र ही न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारण्टी कानून बनाएगी, ऐसी आशा है।
किसानों ने अपनी जिन मांगों के समर्थन में आंदोलन प्रारम्भ किया है, उसमें प्रमुख मांग है – न्यूनतम समर्थन मूल्य (#MSP) से कम दाम पर खरीदने को दंडनीय अपराध घोषित करने वाला कानून बनाया जाए।
गत महीनों में केंद्र सरकार ने तीन कृषि कानून पारित कराए। इन कानूनों ने किसानों को आशंकित कर दिया है। उन्हें डर लग रहा है कि अब धीरे धीरे उन्हें निर्मम बाजार के हवाले कर दिया जाएगा, जहां उन्हें न्यूनतम समर्थन मूल्य भी नहीं मिलेगा। ऐसा होने से किसान और घाटे में चले जायेंगे।
अभी केंद्र सरकार हर वर्ष 23 कृषि उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित करती है। 4-5 राज्यों में उस न्यूनतम समर्थन मूल्य पर केवल धान और गेहूँ खरीदने की सरकारी व्यवस्था है। इस व्यवस्था का लाभ देश के केवल 6% किसानों को ही मिलता है। धान और गेहूँ के अलावा दलहन, तिलहन आदि के न्यूनतम समर्थन मूल्य केंद्र सरकार अवश्य घोषित करती है, पर उनको न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की व्यवस्था सरकारों ने नहीं की है। एक प्रकार से यह किसानों को बाजार में लूटे जाने का अवसर देता है।
कृषि अर्थशास्त्रियों के अनुसार 2000 से 2016 के बीच में घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद की व्यवस्था न होने के कारण किसानों को लगभग 45 लाख करोड़ रुपये का घाटा हुआ। अर्थात 2000 से 2016 तक न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम पर बेचने के लिए मजबूर होने के कारण किसानों को हर वर्ष औसत 3 लाख करोड़ रुपये का घाटा हुआ। 2016 के बाद किसानों को होने वाला ऐसा घाटा और बढ़ा ही होगा।
किसानों को हर वर्ष हो रहे उपरोक्त घाटे को रोकने का प्रमुख उपाय है- न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारण्टी देने वाला कानून। अभी चल रहे किसान आंदोलन की वही प्रमुख मांग है। किसान अपनी कृषि उपज की न्यूनतम मूल्य की गारण्टी मांग रहें हैं, अधिकतम लाभ की नहीं। अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए किसानों को अन्य उपाय स्वयं करने होंगे।
न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारण्टी कानून बन जाने से किसानों को हो रहा घाटा रुक जाएगा। साथ ही सरकार सभी राज्यों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीदने की व्यवस्था भी करे। इन दोनों से किसान सरकारी व्यवस्था में बेचें या खुले बाजार में, वे वर्तमान सरकारी खरीद की व्यवस्था वाले 4-5 राज्यों में रहते हों या अन्य राज्यों में, उन्हें कानून के कारण कृषि उपज के घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य तो मिल ही जायेंगे। किसानों की आय बढ़ेगी, जिससे देश की बहुत बड़ी संख्या गरीबी से मुक्त होगी। उचित मूल्य मिल जाने से अधिकांश किसान स्वयं को बेरोजगार या अर्ध बेरोजगार नहीं मानेंगे। गांवों में खुशहाली आएगी। मुट्ठी भर व्यापारियों की आय बढ़ने की बजाय करोड़ों किसानों की आय बढ़ेगी। अतः वे किसान बाजार में अन्य उपभोक्ता वस्तुओं को अधिक खरीदेंगे, जिससे देश की अर्थव्यवस्था को भी अधिक गति मिलेगी। इस प्रकार न्यूनतम समर्थन मूल्य का गारण्टी कानून किसानों की अधिकांश समस्याओं को दूर करने में सहायक होगा।
केंद्र सरकार हर वर्ष 23 कृषि उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य भले घोषित करती है, पर अधिकांश किसानों को बाजार में वह न्यूनतम मूल्य भी नहीं मिलता है। उदाहरण के लिए केंद्र सरकार ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य इस वर्ष 1900 रुपये क्विंटल घोषित किया है, पर पूर्वी उत्तरप्रदेश और बिहार के किसान 1000 से 1500 रुपये में बाजार में धान बेचने के लिए मजबूर हैं। केंद्र सरकार ने दलहन का न्यूनतम समर्थन मूल्य लगभग 5000 रुपये क्विंटल घोषित किया है पर महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश के किसान दालों को बाजार में 3000-4000 रुपये क्विंटल में बेचने पर मजबूर हैं। अन्य मामलों में भी यही दयनीय दशा है।
अगर केंद्र सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर खरीदने को दंडनीय अपराध बनाने वाला कानून पारित कर देती है, तो वह केंद्र सरकार का किसानों पर महान उपकार होगा। तब सरकारी मंडी हो बाजार या किसान का खेत, पंजाब हो बिहार, धान हो या दालें, किसानों को अपनी कृषि उपजों का न्यूनतम समर्थन मूल्य मिलने लग जायेगा। अर्थात ऐसा कानून देशभर के सभी किसानों के लिए लाभदायी होगा।
बदली हुयी स्थितियों में भारत सरकार ने कृषि क्षेत्र में विकास को गति देने के लिए संसद में तीन कृषि कानून पास कराए हैं। इसमें से एक कानून के अनुसार सरकार द्वारा निर्धारित कृषि उपज बाजार समिति की मंडी (#APMC Market Yard) में ही कृषि उपज का व्यापार करने की शर्त को हटा दिया है। नए कानून के अनुसार किसान के खेत में जाकर भी निजी कंपनियां उनकी उपज को खरीद सकती हैं। इसी प्रकार किसान भी सरकारी मंडी में, निजी मंडी में या दूसरे राज्यों में जाकर अपनी कृषि उपज बेचने के लिए स्वतंत्र हो गये हैं।
इस कानून का मैं स्वागत करता और भारत सरकार को धन्यवाद भी देता, अगर इसी कानून में एक धारा जोड़ कर किसानों को बाज़ारवादी व्यवस्था में शोषित होने से बचाने का प्रावधान सरकार कर देती। वह धारा है – सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य (#MSP) से कम मूल्य पर कृषि उपज को खरीदने को अपराध बना देना और उसका दंड भी निर्धारित कर देना।
बाजार में किसानों की लूट को नियंत्रित करने के लिए ही कृषि उपज बाजार समिति कानून (#APMC Act) बना था। असंगठित किसान अब भी संगठित बाजार में दुर्बल पक्ष है। बाज़ारवादी शक्तियां लाभ को लूट में बदलने में माहिर हैं। इसलिए उस निर्मम बाजार में किसानों को शोषण से बचाने के लिए सरकार द्वारा कानून बनाने की नितांत आवश्यकता है।
कृषि क्षेत्र और किसानों के हितों को संरक्षित करने के लिए अब केंद्र सरकार अलग से एक कानून बनाये, जिससे सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम दाम पर कृषि उपज को खरीदना अपराध बन जाए। ऐसा करना किसानों के हित में तो है ही, भारत सरकार के विषय में किसानों के मन में उठे प्रश्नों को दूर करने के लिए भी जरूरी है।