हरिभूमि के संपादक सोशल मीडिया पर एक टिप्पणी से इतने आहत हो गए कि उन्होंने एक लंबा-चौड़ा लेख लिख कर कहा कि हरिभूमि का हिस्सा होने पर गर्व है मुझे । अपनी निष्पक्ष पत्रकारिता पर उठ रहे सवालों का जवाब हरिभूमि के संपादक ओमकार चौधरी ने कैसे दिया , आप खुद ही पढ़िए उनका पूरा लेेेख।
हरिभूमि का हिस्सा होने पर गर्व है मुझे
आमतौर पर मैं फ़ेसबुक या ट्वीटर पर उतना सक्रिय नहीं हूँ, जितना अन्य मित्र होते हैं। कभी कभार आता हूँ। अधिकांश मित्रों का व्यवहार सम्मानजनक ही होता है परंतु कई बार कुछ लोग जाने-अनजाने या किसी विशेष पूर्वाग्रहों के चलते ऐसी अवांछित टिप्पणी कर जाते हैं जिसका उस विषय से कुछ विशेष लेना-देना नहीं होता है, जिसे लेकर मैंने कोई व्यंग्य किया हो या बात रखी हो। इसके बावजूद किसी विशेष चश्मे से देखने वाले लोग आते हैं और कभी मेरे समाचारपत्र के संबंध में, कभी इसे शुरू करने वाले कैप्टन अभिमन्यु के संबंध में बिना नाम लिए हल्की और सतही टिप्पणी करके भड़ास निकालने की चेष्टा करते हैं।
14 फ़रवरी की सुबह देखा कि स्वयं को पत्रकार बताने वाले एक सज्जन ने मेरे एक व्यंग्य कमेंट पर ठीक इसी तरह की टिप्पणी कर रखी है। उन्होंने कहा कि आपकी अपनी मजबूरी हो सकती है क्योंकि आप एक ऐसे समाचारपत्र से जुड़े हुए हैं…।
ये किसी के लिए भी अवांछित टिप्पणी ही है। इसे मैं ओवरलुक भी कर सकता था। पहले भी करता आया हूँ परंतु कभी-कभी जवाब देना बहुत आवश्यक हो जाता है। पहली बात, मुझे इस पर गर्व है कि मैं हरिभूमि का हिस्सा हूँ। मुझे इससे जुड़े हुए क़रीब-करीब पंद्रह-सोलह वर्ष हो गए हैं। जो लोग इस प्रकार की टिप्पणी करते हैं, उन्हें बता दूँ कि यह समाचार पत्र देश के दस सबसे अधिक प्रसार वाले हिंदी समाचारपत्रों में शामिल है। हरियाणा ही नहीं, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और दिल्ली से भी इसके सात संस्करण प्रकाशित होते हैं। हर वर्ग के पाठक इसे पसंद करते हैं और इसकी आज ब्रांड वैल्यू है। महिलाएँ हों, बच्चे हों, बुजुर्ग हों, युवा हों, सबके लिए समाचार पत्र में विशेष सामग्री होती है और जिस ओर इन सज्जन का संकेत था, उस पर भी कुछ रोशनी डालना आवश्यक है।
कैप्टन अभिमन्यु के परिवार, उनके संस्कारों, समाज और देश के प्रति उनके समर्पण और विशेषकर गुरूकुलों के माध्यम से आदिवासी क्षेत्रों में बहुत गरीब परिवारों के बच्चों के भविष्य संवारने के लिए उन्होंने जितना कार्य किया है, उसके उदाहरण बहुत कम देखने को मिलते हैं। इस परिवार के मुखिया चौधरी मित्रसेन ने आर्य समाज के लिए, गुरुकुलों के लिए, सामाजिक और दूसरे ग़ैरसरकारी संगठनों के लिए जितना किया है, उसकी भी मिसाल आपको बहुत कम मिलेगी। जब जाट आरक्षण के दौरान एक विशेष मंतव्य के तहत उनके परिवार के दस सदस्यों को मार डालने की चेष्टा की गई और उनका आवास, उनके स्कूल और प्रेस को किसी जगह से संचालित भीड़ ने आग लगाकर तहत-नहस करने की चेष्टा की, उस समय भी उन्हीं संस्कारों के कारण वो वित्त मंत्री रहते हुए शांत बने रहे। घर में लाइसैंसी शस्त्र थे। आत्मरक्षा में परिवार की सुरक्षा में लगे गार्ड उनका उपयोग कर सकते थे परंतु भारी क्षति सहने के बावजूद व्यापक समाज हित में उन्होंने ऐसा नहीं होने दिया। जो लोग बड़े सहज तरीक़े से और बड़ी बेशर्मी के साथ कैप्टन अभिमन्यु और उनके परिवार से जुड़े संस्थानों पर औछी टिप्पणी कर देते हैं, वो उनके बारे में कुछ नहीं जानते। उस हिंसा में जिन भी लोगों की संपत्ति को नुक़सान हुआ, उन्हें मुआवज़ा मिला। इनके परिवार और संस्थानों को भी मिला। कितने लोगों ने उस मुआवज़े को सामाजिक कार्यों पर व्यय किया है ? कैप्टन अभिमन्यु के परिवार ने उस धनराशि में कुछ और पैसा जोड़कर और कैप्टन अभिमन्यु को मंत्री के तौर पर वेतन के रूप में जो भी मिला, उसे भी जोड़कर सैकड़ों गरीब परिवारों की विवाह योग्य कन्याओं के हाथ पीले करवा दिए।
कौन किस पार्टी से जुड़ा है। किसकी किस पार्टी के प्रति क्या भावना है, यह एकदम अलग विषय है। लोकतंत्र है। सबको अपनी राय रखने का अधिकार है परंतु किसी परिवार के बारे में अनुचित टिप्पणी कर देना और वो भी बिना जाने-समझे, बेहद अफ़सोस की बात है। चौधरी मित्रसेन के पास किस बात की कमी थी। जब उनके बेटे पढ़-लिखकर काम काज के योग्य हुए, तब चाहते तो अपने पिता के बड़े कारोबार में हाथ बंटा सकते थे परंतु इनमें से तीन भारतीय सेना का हिस्सा बने और देश की सरहदों की सुरक्षा के लिए तैनात रहे। स्वयं कैप्टन अभिमन्यु का चयन आईएएस के लिए हो गया था परंतु किंचित् कारणों से उन्होंने प्रशासनिक सेवा ज्वाइन नहीं की।
सबसे अफ़सोस की बात तो यह है कि उनका जिस तरह का परिवार है। जिस तरह के उनके संस्कार और सामाजिक सरोकार हैं, ऐसे पूरे हरियाणा में कितने परिवार होंगे। योग्यता के साथ-साथ पूरा परिवार बेहद विनम्र है। फिर भी यदि उन पर अथवा उनके समाचारपत्र पर और उससे जुड़े व्यक्ति पर इतनी सतही टिप्पणी कर दी जाती है तो पीड़ा होती है।
मुझे स्वयं के बारे में बताना पड़े, यह भी असहज स्थितियाँ हैं। मेरा छत्तीस वर्ष का पत्रकारिता का अनुभव है। हरिभूमि से मैं 2004 में जुड़ा था। इससे पहले अमर उजाला में चंडीगढ़ संस्करण का प्रभारी रहा। अमर उजाला में ही नेशनल ब्यूरो का हिस्सा रहा। लोकसभा, कांग्रेस, पीएमओ, गृह मंत्रालय और कई स्टेट कवर किए। उससे पूर्व दैनिक जागरण में ग्यारह वर्ष तक सेवाएँ दीं। दैनिक प्रभात से शुरुआत की और डीएलए समाचारपत्र से भी जुड़ा रहा। दो समाचार पत्रों को लाँच करने का अनुभव है। अब तक अलग-अलग विषयों पर मेरी दस पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। आकाशवाणी और टेलीविजन चैनलों पर करेंट अफ़ेयर्स पर होने वाले कार्यक्रमों का हिस्सा रहा हूँ। यूनिवर्सिटीज, कालेजों आदि में छात्रों के बीच लेक्चर के लिए जाता रहता हूँ।
और अंत में। इस सामाचार-पत्र में काम करते हुए मुझे कभी इसका अहसास नहीं हुआ कि इसकी स्थापना करने वाले किसी पार्टी विशेष से जुड़े हुए हैं। मुझे कभी किसी ने कैप्टन अभिमन्यु की प्रेस वार्ता में अथवा पार्टी के किसी कार्यक्रम में नहीं देखा होगा इन सोलह वर्षों में। समाचारपत्र के साथ संपादक के तौर पर जुड़ा हूँ। मैं एक प्रोफेशनल पत्रकार हूँ। देश के अन्य पत्रकारों में इसी रूप में मेरी पहचान है। यह परिवार भी पहले दिन से इसी रूप में मेरा सम्मान करता है। इसलिए, बिना जाने, बिना सोचे विचारे किसी के बारे में अभद्र और अवांछित टिप्पणी करने से बचें। मेरी यही विनम्र प्रार्थना है।