किरायेदार हों या मकान मालिक, नए किराये कानून की खास बातें जानना बेहद जरूरी है

मोदी सरकार का यह दावा है कि आदर्श किराया कानून के जरिए किरायेदार और मकान मालिक दोनों के हितों की रक्षा की जाएगी।

मकान मालिकों और किरायेदारों के बीच होने वाले विवादों को कम करने के मकसद से केन्द्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 2019-20 का बजट संसद में पेश करते समय आदर्श किराया कानून लाने की बात कही थी । केंद्र की मोदी सरकार का यह दावा है कि इस मॉडल किराया कानून के जरिए किरायेदार और मकान मालिक दोनों के हितों की सुरक्षा की जाएगी।

सरकार अपने इस वादे को पूरा करने के लिए तेजी से काम कर रही है । बताया जा रहा है कि इस कानून का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है और अब इसे अंतिम स्वरूप देना ही बाकी रह गया है । गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में बनाया गया मंत्रियों का समूह इस पर तेजी से काम कर रहा है। मंत्रियों के इस समूह में कानून मंत्री और आवास एवं शहरी विकास मंत्री शामिल है। इस नए कानून के मसौदे को लेकर जून के महीने में दो बैठक हो चुकी है । सूत्रों के मुताबिक अगस्त के महीने में इस ड्राफ्ट को कैबिनेट की मंजूरी मिल सकती है , जिसके बाद यह विधेयक के रूप में संसद में पेश किया जाएगा।

सरकार का दावा – किरायेदार और मकानमालिक , दोनों के हितों का रखा गया है ख्याल

सरकार यह दावा कर रही है कि इस कानून में मकान मालिक और किरायेदार दोनों के हितों का ख्याल रखा गया है । ड्राफ्ट में जहां एक ओर Tenancy Agreements के रजिस्ट्रेशन के लिए हर राज्य में एक एक अलग रेंट अथॉरिटी बनाने की बात कही गई है वहीं साथ ही किराये पर मकान या दुकान लेने-देने के मामलों में होने वाले विवादों के जल्द निपटारे के लिए स्पेशल रेंट कोर्ट और रेंट ट्रिब्यूनल की स्थापना का भी प्रस्ताव रखा गया है । रेंट एग्रीमेंट होने के बाद मकान मालिक और किरायेदार दोनों को रेंट अथॉरिटी को इसकी सूचना देनी होगी। रेंट एग्रीमेंट में मासिक किराया, किराये पर रहने की अवधि, मकान में आंशिक या मुख्य रिपेयर कार्य के लिए जिम्मेदारी आदि जैसी सभी जानकारियों का स्पष्ट तौर से उल्लेख करना होगा।

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नए कानून में किरायेदार के लिए क्या हो सकता है खास

  1. मकान या दुकान किराये पर देने के लिए मकानमालिक किरायेदार से दो महीने से ज्यादा की सिक्योरिटी डिपॉजिट की मांग नहीं कर सकेंगे ।
  2. मकान मालिक एग्रीमेंट की अवधि के बीच में अपनी मर्जी से किराये में बढ़ोत्तरी नहीं कर सकेंगे।
  3. किराये में बदलाव करने के लिए मकान मालिक को तीन महीने पहले नोटिस देना होगा।
  4. एग्रीमेंट की अवधि समाप्त होने पर मकान मालिक को अपनी लेनदारी काटने के बाद सिक्योरिटी मनी वापस करनी होगी।
  5. अगर कोई विवाद होता है तो मकान मालिक किरायेदार की बिजली और पानी की आपूर्ति बंद नहीं कर सकेगा।
  6. मकान मालिक को घर के रिपेयर, मुआयने, या किसी और काम से आने के लिए 24 घंटे पहले लिखित नोटिस देना होगा।
  7. रेंट एग्रीमेंट में लिखी समय सीमा से पहले किरायेदार को तब तक नहीं निकाला जा सकता जब तक उसने लगातार दो महीनों का किराया न दिया हो या वो प्रॉपर्टी का गलत इस्तेमाल कर रहा हो।

नए कानून में मकान मालिक के लिए क्या हो सकता है खास

  1. अगर किराएदार निर्धारित समय से ज्यादा मकान में रहता है तो उसे पहले दो महीनों के लिए दोगुना किराया देना होगा। यदि वह दो महीने से ज्यादा समय तक रहता है तो उसे चार गुना किराया देना होगा।
  2. मकान की देखभाल और रखरखाव की जिम्मेदारी मकान मालिक और किरायेदार दोनों की होगी।
  3. अगर मकान मालिक कोई रेनोवेशन करवाता है तो उसे काम खत्म होने के एक महीने बाद किरायेदार की सलाह से किराया बढ़ाने की इजाज़त होगी।
  4. किरायेदार मकान या दूकान का इस्तेमाल स्वयं के लिए ही करेगा , उसे इसे आगे किसी को किराये पर देने का अधिकार नहीं होगा।
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आखिर क्यों बनाना पड़ रहा है आदर्श किराया कानून ?

एक अनुमान के मुताबिक , शहरी इलाकों में 1 करोड़ से ज्यादा प्रॉपर्टीज इसलिए खाली पड़े हैं क्योंकि उनके मालिकों को लगता है कि कहीं किराएदार उनकी प्रॉपर्टी हड़प न ले। उनके इसी डर को खत्म करने और अपनी सम्पत्ति को किराए पर देने के लिए उन्हे प्रोत्साहित करने के मकसद से ही ये कानून लाया जा रहा है । सरकार को लगता है कि इस कानून के बाद मकान मालिकों की हिम्मत बढ़ेगी और वो अपने मकान या दूकान को किराए पर लगाने के लिए आगे आएंगे जिससे शहरी क्षेत्रों में आवास की कमी को दूर करने में बहुत मदद मिलेगी।

राज्य सरकारों की मर्जी – लागू करें या न करें

हालांकि केंद्र सरकार का यह कानून सभी राज्यों पर बाध्यकारी नहीं होगा। इसे राज्य सरकारों की मर्जी पर छोड़ा जाएगा। राज्य सरकारों की मर्जी होगी तो ही वो यह कानून अपने यहां भी लागू करेंगे। हालांकि, यह कानून कहीं भी पिछली तारीखों से लागू नहीं होगा । इससे यह भी साफ हो गया है कि दिल्ली, मुंबई जैसे महानगरों में उन हजारों प्रॉपर्टी मालिकों को कोई राहत नहीं मिलने वाली है जिन्हें प्राइम कमर्शल लोकेशन पर भी पुराने अग्रीमेंट्स के मुताबिक बेहद कम किराया मिल रहा है।