लम्बे समय से प्रतीक्षारत राजस्थानी भाषा को मान्यता देने का मुद्दा गुरूवार को लोकसभा में फिर उठा। राजस्थान के पाली से सांसद पीपी चौधरी ने सदन में अपनी बात रखते हुए बताया कि संसद के दोनों सदनों के अमूमन सभी सदस्य अपनी क्षेत्रीय भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में जुड़वाने के पक्ष में है। इसी परिपेक्ष्य में राजस्थानी भाषा को भी इस सूची में सम्मिलित करने के लिए प्रयासरत है।
नियम 377 के तहत लोकसभा में मुद्दा उठाते हुए पाली सांसद ने बताया कि भारत में बोली जाने वाली लगभग सभी भाषाओं का अपना इतिहास है, स्वयं की अपनी-अपनी रचनाएं, कविताएं, लोकगीत, रागनियां, भजन, धारावाहिक तथा फिल्में आदि है।
10 करोड़ से अधिक लोग बोलते हैं राजस्थानी भाषा
पी.पी.चौधरी ने कहा कि भारत सरकार के पास 38 भाषाओं को मान्यता देने का प्रस्ताव काफी समय से लंबित है। इसमें सम्मिलित राजस्थानी भाषा भी एक है। राजस्थान सहित देश विदेश के करीब 10 करोड़ लोग इस भाषा का प्रयोग बोलचाल एवं लेखन में करते है।
उन्होंने सदन को जानकारी देते हुए बताया कि राजस्थानी भाषा का प्रस्ताव वर्ष 2003 में राजस्थान विधानसभा द्वारा संसद को अपनी सहमती के साथ भेज दिया गया था, जिसके बाद सदन में चर्चा के दौरान तत्कानील गृृह मंत्री जी ने 17 दिसम्बर 2006 को राजस्थानी भाषा को मान्यता देने के लिए बिल पेश करने का आश्वासन दिया था। लेकिन लंबे अंतराल के बाद भी इस पर सदन द्वारा कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है। आज मैं एक बार फिर राजस्थानी भाषा को मान्यता देने की मांग करते हुए कहना चाहूंगा कि ‘ई बार राजस्थानी भाषा ने मान्यता मिलणी ही चाइजे।’