अनजान सी डगर पे हूं
सुनसान से सफ़र मे हूं,
अनजान सी डगर पे हूं।
दोस्त कई दिली मिले,
कहीं शिकवे गिले मिले,
कुछ दूर साथ चले,
कुछ छोड़ हाथ चले,
कहीं बहुत प्यार मिला,
कभी कुछ तिरस्कार मिला,
कभी राह आसान सी,
कहीं लगी वीरान सी,
कहीं गिरा, तो उठाया गया,
उठा कभी, तो गिराया गया,
खुशबू का झोंका मिला
कभी गहरा धौखा मिला,
कहीं फिसलता,
कभी संभलता,
मंजिल कितनी दूर अभी,
कभी देखने को उचकता,
कभी ऊंची उड़ान सी,
कभी सिसकियां वीरान सी,
कभी था खुश बहुत ,
क्यों बड़ी फिक्र में हूं ?
कहीं मिली गलत डगर,
कभी हुआ मै गलत,
बहुत के जिगर में हूं,
सुनसान से सफ़र मे हूं,
अनजान सी डगर पे हूं।।
( कवि- नरेंद्र राठी, कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं और उत्तर प्रदेश के पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राज बब्बर के सचिव रह चुके हैं।)