370 पर सोशल मीडिया – फेसबुक की दुनिया से मदन कुमार झा

मदन कुमार झा

भविष्य की नजर में आज का इतिहास।

आज का दिन सम्पूर्ण भारत, विशेषकर जम्मू-कश्मीर एवं लद्दाख के नजरों में,  स्वर्णिम कहलायेगा या काला दिवस यह भविष्य निर्णय करेगा । लेकिन यह पहला परिसीमन है जो संसद में इतनी आसानी से पास हो गया। जहां अन्य राज्यों के परिसीमिन के विरोध में लोगों ने जानें भी गँवाई वहीं आज के इस परिसीमन से अधिकांशतः जनता प्रसन्न ही दिख रही है। जम्मू एवं कश्मीर से शेष भारत के लोगों के लगाव का मूल्यांकन इस बात से भी की जा सकती है कि इसके परिसीमन की खुशी देश के विभिन्न भागों जैसे दिल्ली, बिहार, भोपाल, अहमदाबाद आदि में मनाई गई।

जहां विपक्षी दलों एवं जम्मू एवं कश्मीर के मुख्य राजनीतिक दल इस परिसीमन को जन विरोधी बता रही है वहीं राज्य में किसी तरह का उग्र विरोध नहीं दिखना या तो मोदी-शाह-डोवाल का कुशल प्रबंधन के रूप में देखा जाएगा या आम कश्मीरी अवाम का समर्थन के रूप में। मुझे लगता है कि इसके दोनों ही कारण हैं अर्थात अधिकांश कश्मीरियों का समर्थन भी है और अलगाववादियों से निपटने का कुशल प्रबंधन भी।

आज के दिन को मैं भाजपा के कुशल प्रबंधन के रूप में इसलिए भी देखता हूँ कि आज से पहले किसी कानूनविद या संविधान विशेषज्ञ ने आर्टिकल 370 एवं 35ए को समाप्त किये जाने का इतना सरल एवं सुगम मार्ग नहीं बताया था। जितने भी विशेसज्ञों को हमने सुना सब का यही मत था कि यह लगभग असंभव  है क्योंकि पहले इसे राज्य की विधान सभा से पास कराना होगा।

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आज का दिन इतिहास के पन्नों में जैसा भी लिखा जाए लेकिन आज इसे नेहरू जी की भूल के रूप में भी देख रहे हैं। क्योंकि जहां शेष भारत में प्रतिव्यक्ति सरकार 2 से तीन हजार खर्च करती है वहीं जम्मू एवं कश्मीर में यह राशि 15 हजार से ऊपर होने के बावजूद लोग शेष भारत से कम ही खुशहाल हैं। जितनी मेरी समझ है, इस राशि को देखकर लगता है कि आर्टिकल 370 कुछ लोगों के लिए नोट छापने की मशीन भी हो सकती है क्योंकि जिनके पुरखों ने कभी कोई उद्योग नहीं चलाया, कोई उच्च वेतन बाली नौकरी नहीं की उनका हजारों करोड़ का मालिक बनने में इन अनुच्छेदों का योगदान भी हो सकता है।

जो भी हो आज भारतवर्ष सचमुच कश्मीर से कन्याकुमारी तक फैल गया। परंतु कश्मीर का कुछ हिस्सा आज भी भारत से अलग है जिसपर पाकिस्तान का कब्जा है।