दुनिया बड़ी तेजी से बदल रही है और इस बदलती दुनिया में भारत का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है । आतंकवाद से लेकर व्यापार तक , कच्चे तेल की कीमत से लेकर पर्यावरण के मसले तक हर मुद्दें पर हर मंच पर भारत की बात न केवल सुनी जाती है बल्कि इसे खासी तवज्जों भी दी जाती है । हाल के वर्षों में संयुक्त राष्ट्र , जी- 20 , शंघाई सहयोग संगठन समेत तमाम अंतर्राष्ट्रीय और वैश्विक मंचों पर भारत को मिल रहे सम्मान से यह साफ-साफ नजर आ रहा है कि अब दुनिया की सोच भारत को लेकर बदल रही है ।
अमेरिकी सीनेट ने मंजूर किया प्रस्ताव
अमेरिका ने भारत को अपने करीबी सहयोगी नाटो देशों जैसा दर्जा दे दिया है । अमेरिकी ससंद ने इससे जुड़े एक प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है और अब इसी के साथ यह तय हो गया है कि आने वाले दिनों में भारत –अमेरिकी संबंध एक नई ऊंचाई छूते नजर आएंगे। खासतौर से रक्षा संबंधी मामलों में अब अमेरिका भारत के साथ नाटो के अपने सहयोगी देशों इजरायल , फ्रांस और दक्षिण अफ्रीका की तर्ज पर ही समझौते करेगा।
नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन ऐक्ट
दरअसल , भारत के लगातार बढ़ते प्रभाव के बीच वित्तीय वर्ष 2020 के लिए नेशनल डिफेंस ऑथराइजेशन ऐक्ट को अमेरिकी सीनेट ने पिछले सप्ताह ही मंजूरी दी थी। अब इस विधेयक में संशोधन के प्रस्ताव को भी मंजूरी मिल गई है। सीनेटर जॉन कॉर्निन और मार्क वॉर्नर की ओर से पेश किए गए विधेयक में कहा गया था कि हिंद महासागर में भारत के साथ मानवीय सहयोग, आतंक के खिलाफ संघर्ष, काउंटर-पाइरेसी और मैरीटाइम सिक्यॉरिटी पर काम करने की जरूरत है।
गौर करने वाली बात यह है कि इजरायल की तर्ज पर ही अब भारतीयों का एक समूह भी अमेरिकी शासन व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने लगा है । अमेरिका में भारतीयों के समूह हिंदू अमेरिकी फाउंडेशन ने अमेरिकी संसद से यह विधेयक पारित हो जाने के बाद दोनों अमेरिकी सीनेटरों कॉर्निन और वॉर्नर का जबरदस्त अभिनंदन करके यह साबित कर दिया कि वहां मौजूद भारतीय भी भारत-अमेरिकी संबंधों को इजरायली नागरिकों के तर्ज पर ही मजबूत करने में लगे हैं।
लगातार मजबूत होते भारत-अमेरिकी संबंध
यह भारत और अमेरिका के बीच अभूतपूर्व संबंधो की शुरुआत है। वैसे आपको बता दे कि अमेरिका ने भारत को 2016 में बड़ा रक्षा साझीदार माना था। इस दर्जे का अर्थ है कि भारत उससे अधिक एडवांस और महत्वपूर्ण तकनीक वाले हथियारों की खरीद कर सकता है। अमेरिका के करीबी देशों की तरह ही भारत भी उससे हथियारों और तकनीक की खरीद कर सकता है। हालांकि इसकी शुरूआत उदारीकरण के दौर के साथ ही हो गई थी लेकिन उस समय अमेरिका भारत को बराबरी का दर्जा देने को तैयार नहीं था । परमाणु परीक्षण के कुछ सालों बाद अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान परमाणु ऊर्जा और आतंकवाद जैसे मसलों पर दोनों देशों के बीच बातचीत शुरू हुई । मनमोहन सरकार के दौर में परमाणु सहयोग को लेकर दोनों देश और ज्यादा करीब आ गए। नरेंद्र मोदी ने पहले बराक ओबामा और बाद में डोनाल्ड ट्रंप के साथ मजबूत व्यक्तिगत संबंध बनाकर दुनिया को यह बता दिया कि अब भारत अमेरिका के बराबर न केवल आ चुका है बल्कि अमेरिका भी अब शीतयुद्ध के दौर को भूला कर भारत को बराबरी का दर्जा मन से देने को तैयार हो चुका है और अमेरिकी सीनेट का फैसला इसी की एक बानगी भर है ।