जायरा वसीम अर्थात सुंदर राजकुमारी पर फेसबुक की दुनिया से शिशिर सोनी

जायरा को 'दंगल' के रिलीज होने के बाद से ही धमकियां मिलनी शुरू हो गयी थीं। 'सीक्रेट सुपरस्टार' के बाद यह सिलसिला तेज हुआ था। जायरा से पहले भी संगीत को हराम बताने वाले फतवों,आलोचनाओं और धमकियों के बाद एक रॉक बैंड में काम करने वाली तीन कश्मीरी लड़कियों को अपने संगीत कैरियर को अलविदा कहना पड़ा था।

शिशिर सोनी , वरिष्ठ पत्रकार

जायरा वसीम का तर्जुमा करें तो अर्थ होगा सुंदर राजकुमारी। तेरह से अठारह बरस की उम्र में दो बेहद सफल फिल्म में काम। नेशनल अवार्ड जीता। देश ने सिर आँखों पे बिठाया। कश्मीर सहित देश की नव युवतियों के लिए प्रेरणा बन रही जायरा ने आखिरकार धर्म और अल्लाह को कवच बनाते हुए फिल्म से तौबा क्यों किया? इस पे बहस हो रही है। मेरी समझ से बहस जरूरी भी है। इससे देश की कई जायरा को जहालत में धँसने का डर है। सो, हर कोण से बहस समय की दरकार है।

जायरा वसीम का फिल्म छोड़ने का फ़ैसला उनका व्यक्तिगत फ़ैसला है जिसका सम्मान किया जाना चाहिए। हां, उनका वह बयान ज़रूर आपत्तिजनक है जो उन्होंने फिल्म छोड़ने के वजह के तौर पर दिया है। उनका कहना है कि सिनेमा की चकाचौंध और सफलता उन्हें लगातार अल्लाह और ईमान से दूर कर रही थी। यह जहालत से भरा बयान है। किसी के पेशे का उसके मज़हब से कोई संबंध होता है क्या ?

हमारे देश में नरगिस, सुरैया, मधुबाला, मीना कुमारी, वहीदा रहमान, शबाना आज़मी सहित दर्जनों महान अभिनेत्रियां हुई हैं जिन्होंने अपने धर्म के साथ अपने पेशे को भी बड़ी खूबसूरती से निभाया है। पाकिस्तान और बांग्लादेश सहित दुनिया के लगभग सभी इस्लामी देशों में फिल्में बनती हैं और उनमें उन देशों की औरतें भी काम करती हैं। निःसंदेह वे सभी अल्लाह की दुश्मन या शैतान की औलाद नहीं हैं। जायरा के बयान से अभिनय, नृत्य और संगीत में अपना भविष्य तलाशने वाली मुस्लिम लड़कियों में गलत संदेश जाएगा। उन्होंने बगैर मूर्खतापूर्ण बयान दिए शालीनता से फिल्मों को अलविदा कह दिया होता तो बहस की गुंजाइश नहीं होती।

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कुछ लोग अगर उनके फैसले को कश्मीरी कट्टरपंथियों के डर से प्रेरित बता रहे हैं तो वे बिल्कुल झूठे भी नहीं लगते। जायरा को ‘दंगल’ के रिलीज होने के बाद से ही धमकियां मिलनी शुरू हो गयी थीं। ‘सीक्रेट सुपरस्टार’ के बाद यह सिलसिला तेज हुआ था। जायरा से पहले भी संगीत को हराम बताने वाले फतवों,आलोचनाओं और धमकियों के बाद एक रॉक बैंड में काम करने वाली तीन कश्मीरी लड़कियों ने अपने संगीत कैरियर को अलविदा कहना पड़ा था। इन कड़ियों को मिलाने की जरूरत है। उनके “अलविदा” को हर कसौटी पे कसे जाने की जरूरत है।

जिस उम्र की जायरा हैं अफगनिस्तान की मलाला यूसुफजयी पर उसी उम्र में कठमुल्लाओं ने दर्ज़नो हमले किये। अफगान में इस्लाम का नाम लेकर लड़कियों को शिक्षा से दूर रखने वाली नीतियों को मलाला ने पुरजोर विरोध किया। कोठरियों में बंद लड़कियों को शिक्षा की रोशनी दिखाई। मलाला के समाज सुधार के काम को भी इस्लाम विरोधी मान कर उनके खिलाफ फ़तवे जारी हुए थे, लेकिन वो तो नहीं डरी। चलती रही। अनवरत। अपने नेक काम को आल्लाह के खिलाफ नहीं माना ! इस्लाम विरुद्ध नहीं माना क्यों कि समाज सेवा बड़ा सच्चा धर्म कोई नही।

अंत में….

इस्लाम की गलत ब्याख्या कर अपनी काबलियत को कुर्बान करना, जायरा होना आसान है अल्लाह की नेमत से हमकदम लड़कियों को जहालत से निकालना, मलाला बनना मुश्किल। सुंदर राजकुमारी ने आसान रस्ता चुना